शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/२४-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= गुरु का उत्तर =*
*सुनि श्रवनूं तोसौं कहौं, तूं है जान प्रबीन ।*
*बे चारौं समुझै नहीं, महा मुग्ध मति हीन ॥२४॥*
(गुरुदेव बोले -) "श्रवनू ! तूं मुझे बुद्धिमान लगता है, अतः तुमसे तुम्हारा हित बताने में कोई हानि नहीं है । तुम्हारे ये चारों भाई तो मूढ़ बेअक्ल है, ये अपने हित की बात भी नहीं समझ सकेंगे ॥२४॥
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*अब तूं मेरौ वचन सुनि, तोहि कहौं संदेश ।*
*निकट पिता कै जाइ करि, कहिये हित उपदेश ॥२५॥*
। अब तूँ मेरी बात सुन, और जैसा मैं बताऊँ वैसा कर । तूँ अपने पिता के पास जाकर मेरी बतायी हित की बात कह । देखें, वह क्या कहता और करता है ! ॥२५॥"
(क्रमशः)

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