बुधवार, 12 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
.
*कंस पात्र कौ होइ पुनि, सदन मध्य आभास ।*
*त्यौं मन तें इन्द्रिय सकल, बहु बिधि करहिं प्रकास ॥५॥*
फिर जैसे प्रतिबिम्बित कांस्यपात्र का प्रकाश घर में पड़कर घर को प्रकाशित करता है, उसी तरह उस आत्मप्रतिबिम्बित मन के प्रकाश से प्रकाशित होकर इस देह की ये इन्द्रियाँ जगत् के नाना प्रकार के विषयों को प्रकाशित करती हैं ॥५॥
.
*= प्रपितामह का स्वरूप =*
*परमातम साक्षी रहै, ब्यापक सब घट मांहि ।*
*सदा अखंडित एक रस, लिपै छिपै कछु नांहि ॥६॥*
इनमें परमात्मा एक ऐसा तत्व है जो स्वयं कोई कार्य नहीं करता, साक्षीमात्र रहता है । सर्वत्र व्याप्त होकर रहता है । सदा अखण्डित(अविनाशी) तथा निष्क्रिय(एकरस) रहता है । वह न किसी में लिप्त(आसक्त) होता है, न गुप्त ॥६॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें