बुधवार, 3 मई 2017

= मन का अंग =(१०/१००-२)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
जहां सुरति तहं जीव है, जहं नाँहीं तहं नाँहिं ।
गुण निर्गुण जहं राखिये, दादू घर वन माँहिं ॥१००॥
जहां प्राणी की वृत्ति अन्त समय में रहती है, वहां ही जीव चला जाता है और जहां वृत्ति अन्त समय में नहीं रहती, वहां नहीं जाता । अत: स्मरण रखना चाहिए - तुम अपनी वृत्ति गुणमय सँसार के किसी घर या वन में रखोगे तो वहां ही जा जन्मोगे और निर्गुण ब्रह्म में रक्खोगे तो निर्गुण ब्रह्म में ही लय हो जाओगे ।
जहां सुरति तहं जीव है, आदि अन्त अस्थान ।
माया ब्रह्म जहं राखिये, दादू तहं विश्राम ॥१०१॥
जहां वृत्ति आदि से अन्त तक लगी रहती है, वही जीव का स्थान बन जाता है । यदि माया में वृत्ति रक्खोगे तो मायिक सँसार ही तुम्हारा विश्राम स्थान होगा और ब्रह्म में रक्खोगे तो ब्रह्म विश्राम स्थान होगा ।
जहां सुरति तहं जीव है, जीवन मरण जिस ठौर ।
विष अमृत जहं राखिये, दादू नाहीं और ॥१०२॥
जहां वृत्ति रहती है वहां ही जीव रहता है और जिस स्थान में वृत्ति रहती है, मरके वहां ही जन्मता है । चाहे विषय - विष में वृत्ति रक्खो वो ब्रह्म - चिन्तनामृत में रक्खो । जिसमें वृत्ति रक्खोगे उसे ही प्राप्त होगे । 
(क्रमशः)

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