मंगलवार, 20 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/५१-३) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*गनैं एक तें सो लगैं, सौ तें गानिये एक ।*
*कहिबे ही कौ फेरि है, सुन्दरि समझि बिबेक ॥५१॥*
(दूसरा उदाहरण देकर इसी बात को समझा रहे हैं -) भले ही आप एक की तरफ से सौ तक गिनिये या फिर सौ से एक तक गिनते चले आइये -संख्या में क्या फर्क पड़ता है ! यह कहने भर का ही अन्तर है, वस्तुतत्व में कोई अन्तर नहीं पड़ता ॥५१॥
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*सुन्दर पृथ्वी आदि दे, गनैं व्यौंम लौं कोइ ।*
*व्यौंम आदि दै जो गनैं, पृथ्वी आवै सोइ ॥५२॥*
(तीसरा उदाहरण लीजिये -) पञ्च महाभूतों की गणना से पृथ्वी से लगा कर आकाश तक गिनिये संख्या पाँच ही होगी या फिर आकाश से गणना प्रारम्भ करने पर पाँच की संख्या पूरी करने के लिये पृथ्वी तक आना ही होगा ॥५२॥
(इस लिये मैंने जो यह प्रतिलोम-पद्धति से अपनी गुरुपरम्परा बतायी है इसमें पद्धति के कारण कोई अन्तर नहीं समझना ।)
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*= उपसंहार =*
*संप्रदाय यह ग्रन्थ है, ग्रन्थित गुरु कौ ज्ञान ।*
*सुन्दर गुरु तें पाइये, गुरु बिन लहै न आन१॥५३॥*
(१. परब्रह्म परमात्मा से सब ज्ञान का उद्गम है । परन्तु वह गुरु बिना नहीं प्राप्त हो सकता है, जैसे बादल के बिना वर्षा का जल नहीं मिलता । गुरु ज्ञान-दान का कारण है, निमित्त है, जरिया है । ज्ञान नित्य है, परन्तु शिष्य को गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है ।)
*= ॥ समाप्तोऽयं गुरुसम्प्रदायग्रन्थः ॥ =*
श्री सुन्दरदासजी महाराज कहते हैं - मैंने जो यह 'गुरुसम्प्रदाय ग्रन्थ'
बनाया है इसमें हमारे गुरु द्वारा उपदिष्ट अध्यात्म ज्ञान भरा पड़ा है । (अर्थात् मैंने अपनी गुरु प्रणाली बताने के बहाने अपने गुरु द्वारा उपदिष्ट अध्यात्म ज्ञान का ही वर्णन कर दिया है ।) इसे वही समझ सकता है जो गुरु से विनयपूर्वक पूछे । बिना गुरु के बताये किसी के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ता । इसको पाने-समझने का यही तरीका है, और कोई नहीं ॥५३॥
*॥ यह गुरुसम्प्रदाय ग्रन्थ समाप्त ॥*
(क्रमशः)

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