🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११) =*
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{इस छोटे से ग्रन्थ में यह वर्णन किया है कि उस अखिलब्रह्माण्डनायक परब्रह्म परमात्मा से ही 'एकोऽहं बहु स्याम्' के संकल्प से यह त्रिगुणात्मिका सृष्टि बनाई । उसी के संकेत से इस में ब्रह्मा, विष्णु, महेश पैदा हुए, इन्द्र और अन्य देवी-देवता आये । यक्ष राक्षस, गन्धर्व, किन्नर, विद्याधर, भूत-प्रेत पिसाच आदि की रचना हुई । और प्रकाश के लिये चन्द्रमा-सूर्य दो दीपक रचे गये । नभ के वितान में तारों का जड़ाव किया ।
सात द्वीप, नौ खण्ड में विभक्त पृथ्वी का निर्माण हुआ । सात समुद्र, और आठ पर्वत, गंगा यमुना आदि नदियाँ बनायीं । उसी ने अठारह भार वनस्पति और अनेक प्रकार के फल-फूल तथा समय समय बादलों से वृष्टि, स्वेदज, अण्डज, और जरायुज, उद्भिज आदि प्राणी एवं खेचर, भूचर, जलचर आदि अगणित कीट-पतंग तथा चौरासी लाख योनियों में नाना प्रकार के जीव पैदा किये । पाताल लोक से वैकुण्ठ तक चौदह लोक बनाये ।
इस तरह परमात्मा ने सृष्टि तो बना दी, परन्तु स्वयं सब में व्यापक होकर छुपे रहते हैं । वस्तुतः वह ब्रह्म(चेतन शक्ति) घट घट में व्यापक होने के कारण गुप्त नहीं रह पाता । वह जड़ पदार्थों की चेतना से जाना जाता है । यह कितने आश्चर्य की बात है कि वह सब का कर्ता-धर्ता होकर भी कहीं लिप्त नहीं होता !}
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*= मंगलाचरण = दोहा =*
*मन उमग्यौ कछु कहन कौं,हृदय बढ्यौ आनन्द ।*
*सुन्दर बहुत प्रकार करि, बन्दत गुरु गोविन्द ॥१॥*
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं- आज हमारा मन कुछ(अपूर्व बात) कहने को उमंग रहा है । दिल भी आज काफी मौज में है । परन्तु इससे पूर्व मैं नाना प्रकार से अपने गुरुदेव तथा इष्टदेव को प्रणाम करना अपना प्रथम कर्तव्य समझता हूँ ॥१॥
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*= नीसांनी१ =*
*गुरु गोविन्द प्रसाद तें, प्रकटी मुख बानी ।*
*जैसौ बुद्धि प्रकाश है, बरनौं नीसांनी ॥२॥*
(१. नीसांनी = छन्द२३ मात्रा का,१३+१० पर यति और अंत में दो गुरु यह लक्षण छन्द रत्नावलि में है । छन्दार्णव में इसे दृढ़पट्ट लिखा है । यहाँ नीसांनी शब्द में श्लेष है, अतः इसका अर्थ पहिचान वा लक्षण भी है ।)
क्योंकि गुरुदेव तथा इष्टदेव की कृपा से ही, मैं जो कहना चाहता हूँ कह पाऊँगा । मेरे पास जैसी बुद्धि है, उसके अनुसार भगवान् के अपूर्व तथा आश्चर्यमय कार्यों का वर्णन करूँगा ॥२॥
(क्रमशः)
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