बुधवार, 21 जून 2017

= १११ =

卐 सत्यराम सा 卐
*सारा दिल सांई सौं राखै, दादू सोई सयान ।*
*जे दिल बंटै आपना, सो सब मूढ़ अयान ॥* 
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साभार ~ Meenu Ahuja
प्राचीनकाल में कंचनपुर में राजा कौआ अपनी रानी के साथ एक घने पेड़ पर रहता था । वह उसे बहुत प्यार करता था । एक दिन दोनों न जाने क्या सोचकर महल की ओर उड़ चले । वहाँ स्वादिष्ट मछली देखकर रानी के मुहँ में पानी भर आया । किंतु सख्त पहरा होने के कारण वे उसे उठा न सके । दोनों वापस अपने घोंसले में आ गए 
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अगले दिन राजा कौए ने रानी से कहा, ‘चलो प्रिये, भोजन की खोज में चलते है ।’ रानी ने कहा ‘मुझे तो उसी महल का स्वादिष्ट भोजन चाहिए अन्यथा मैं अपने प्राण त्याग दूँगी ।’ राजा कौआ सोच में पड़ गया । तभी उसका सेनापति कौआ आ गया 
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‘क्या बात है महाराज? आप चिंतित लग रहे हैं?’ सेनापति कौए ने पूछा राजा ने उसे अपनी चिंता का कारण बताया । सेनापति ने कहा, ‘महाराज आप चिंता न करे, मैं रानी को मनपसंद भोजन ला दूँगा ।’ आठ होशियार कौओं को लेकर सेनापति कौआ महल में रसोई की छत पर जा बैठा 
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उसने निर्देश दिया, ‘ध्यान से सुनो । जब राजा का खाना जा रहा होगा, तो मैं ऐसी चेष्टा करूँगा जिससे रसोइए के हाथ से थाल गिर जाए । तुममें से चार अपनी-अपनी चोंच में चावल भर लेना और चार अन्य मछली । फिर रानी के पास उड़ जाना । वह रसोइया जैसे ही आँगन में आएगा तब मैं उस पर झपट्टा मारूँगा ।

कुछ देर बाद जैसे ही रसोइया खाना लेकर आँगन में पहुँचा तो सेनापति कौए ने अपनी चोंच रसोइए के सिर में दे मारी । रसोइए के हाथ से थाल छुट गया । थाल के गिरते ही आठों कौए अपनी-अपनी चोंच भरकर उड़ गए । उधर सिपाहियों ने सेनापति कौए को पकड़ लिया । वह सोचने लगा, कोई बात नहीं मेरा चाहे कुछ भी हो, मगर रानी की इच्छा तो पूरी हो गई 

फिर उसे राजा के पास ले जाया गया । ‘ऐ कौए ! तूने मुझे नाराज करके अपनी जान खतरे में डाली । बता ऐसा क्यों किया तूने ?’ ‘आपके थाल का भोजन हमारी रानी को चाहिए था । मैंने उस लाने का वचन दिया था और अब उसे पूरा किया है...बस । मैं आपकी कैद में हूँ, जो दंड देना चाहें मुझे स्वीकार होगा ।’ कहकर सेनापति कौआ मौन हो गया 
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‘ऐसे स्वामिभक्त को तो उपहार मिलना चाहिए...दंड नही । इसे आज़ाद कर दो...और सुनो...आज से जो भी खाना मेरे लिए बनेगा, उसमें से तुम्हारे राजा, रानी व तुम्हारे लिए हिस्सा भेजा जाएगा और तुम्हारी प्रजा के लिए भी ढेर सारा चावल रोज पका करेगा ।’ सेनापति कौआ राजा को प्रणाम करके वापस अपने राजा के पास पहुँच गया । 
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शिक्षा : स्वामिभक्ति का सम्मान सभी जगह होता है । यदि किसी के प्रति निष्ठा रखी है तो उस पर जान तक देने को तैयार रहना चाहिए । सेनापति कौए ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया और इसीलिए वह उस राज्य के राजा की निगाहों में भी चढ़ गया । 

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