सोमवार, 26 जून 2017

= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११/१२-३) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११) =*
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*= समुद्र-पर्वत आदि की सृष्टि =*
*सागर मेरु उपाइया, पृथ्वी मध्यांनी ।*
*अष्ट कुली पर्वत किये, बिचि नदी बहांनी ॥१२॥*
इतना ही नहीं, इस पृथ्वीमण्डल के बीच में ही सात सागर तथा सुमेरु आदि पर्वतों की रचना की । इन्हीं पर्वतों के मध्य जगह-जगह गंगा, यमुना, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों को प्रवाहित किया ॥१२॥
(अष्टकुली पर्वत=पर्वत आठ देखे सुने नहीं गये । हाँ सात पर्वत हैं और सात की संख्या के लिए पर्वत शब्द आता है । अष्टकुली नाम प्रसिद्ध है ।)
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*भार अठार बनस्पती, फल फूल फुलांनी ।*
*समये समये आइकैं, घन बरखहिं पांनी ॥१३॥*
इसी प्रकार अठारह प्रकार के सघन वृक्ष व पेड़-पौधे, वनस्पति फल-फूल सहित पैदा किये । और उन्हें हरा-भरा रखने के लिये समय-समय पर बादलों का निर्माण कर जल-वर्षा का भी उपाय किया ॥१३॥
(क्रमशः)

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