गुरुवार, 1 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/१७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*तिनि हूँ क्षमानन्द गुरु पायौ ।*
*क्षमावन्त सब कै मन भायौ ।*
*सहनशील ऐसौ नहिं कोई ।*
*काहू हुते क्षुभित नहिं होई ॥१७॥*
उनहोंने श्री क्षमानन्दजी को अपना गुरु बनाया । वे क्षमानन्दजी इतने क्षमाशील थे कि सभी मनुष्य उनसे स्नेह करते थे । वे इतने सहनशील भी थे कि वे किसी भी अवस्था में छोटे या बड़े किसी से भी क्षुब्ध(भीत) नहीं होते थे ॥१७॥
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*तिन कौ गुरु है निर्गत रोसा ।*
*तुष्टानन्द लिये संतोसा ।*
*तृष्णा सकल खोदि जिनि गाडी ।*
*मुक्ति अआदी सब इच्छा छाडी॥१८॥
उनके गुरु थे तुष्टानन्दजी । जो परम सन्तोषी थे । उनके स्वभाव में कहीं क्रोध का नामोनिशान भी नहीं था । उनहोंने समग्र प्रकार की तृष्णाओं को हमेशा के लिये गहरी जमीन खोदकर उसमें गाड़ दिया था कि वे फिर कभी जीवित न हो सकें । यहाँ तक कि उनहोंने अपनी तुरियातीतावस्था में मुक्ति की आशा भी त्याग दी थी ॥१८॥
(क्रमशः)

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