#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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बाजी मोहे जीव सब, हमको भुरकी बाहि ।
दादू कैसी कर गया, आपण रह्या छिपाइ ॥ ८८॥
ईश्वर यह कैसी विचित्र लीला कर गया है - हम सब जीवों को माया रूप भुरकी डाल कर मोहित कर दिया है और आप हमारे हृदय में रहकर भी हमसे छिप रहा है ।
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दादू सांई सत्य है, दूजा भरम विकार ।
नाम निरंजन निर्मला, दूजा घोर अँधार ॥ ८९॥
इस सँसार - बाजी का स्वामी परमात्मा ही सत्य है । उससे भिन्न जो भी विकार हैं, वे भ्रम रूप हैं । प्राणी को निरंजन राम का नाम ही निर्मल करता है । दूसरे विकार तो घोर मोहान्धकार में डालते हैं ।
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दादू सो धन लीजिये, जे तुम सेती होइ ।
माया बांधे कई मुये, पूरा पड्या न कोइ ॥ ९०॥
हे साधको ! यदि तुमसे प्रयत्न हो सके तो ब्रह्म साक्षात्कार - धन को ही प्राप्त करो, साँसारिक माया रूप धन को संग्रह करते - करते तो कितने ही मर गये हैं किन्तु किसी को भी पूर्ण सँतोष नहीं हुआ है ।
(क्रमशः)
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