卐 सत्यराम सा 卐
*दादू खेल्या चाहै प्रेम रस, आलम अंगि लगाइ ।*
*दूजे को ठाहर नहीं, पुहुप न गंध समाइ ॥*
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साभार ~ Virendra Modanwal
व्यक्ति जिसे सही समझता है उसे जानने के बाद भी प्रसन्न नहीं रहता है। वह सोचता है, 'मैं कल अधिक खुश रहूंगा।' अच्छा हो वह आज में जीने लगे। इस दुनिया सत्य को पूरी तरह समझ पाने का कोई छोर नहीं है। यही कारण है कि हर गुरु ने इस स्थिति में खुद को असहाय पाया है। उन्होंने बहुत कुछ कहा लेकिन फिर भी सत्य पूरी तरह उद्घाटित नहीं हुआ। फिर इसे अनुभूति पर छोड़ दिया गया।
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यह उसी तरह है कि आपके पास एक बहुत ही अच्छी रेसिपी बुक है लेकिन जरूरी नहीं है कि उस पुस्तक के अनुसार हर किसी की रेसिपी अच्छी ही बने। क्योंकि बहुत कुछ बनाने वाले पर भी निर्भर करता है। जब तक बनाने की विधि नहीं आएगी तब तक रेसिपी की उस पुस्तक की कोई उपयोगिता नहीं है।
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उसी तरह हमारे धर्मग्रंथ हमें सही मार्ग बताते हैं लेकिन उन पर चलना तो हमारी योग्यता पर ही निर्भर करता है। हर मस्तिष्क की अपनी अलग भूख है कि वह दुनिया और जानना और समझना चाहता है। कई बार लोग इस बात को जानते भी नहीं हैं कि उनकी आत्मा की कुछ मांग है भी या नहीं। आत्मा की इस मांग को कई बार वे प्रसन्नता का नाम देते हैं। ज्यादातर लोग इसे खुशी की तलाश के नाम से जानते हैं।
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आप भले ही ईश्वर को मानते हों या न मानते हों, आस्था रखते हों या नहीं लेकिन हर स्थिति में रहने वाले मनुष्य को खुशी की तलाश है। मेरा यह मानना है कि प्रसन्नता का ही दूसरा नाम सत्य है। प्रसन्नता को हम सत्य का समझ में आने वाला नाम कह सकते हैं। चाहे जो भी हो लेकिन वह सत्य का ही एक रूप है। हर व्यक्ति अपनी तरह से प्रसन्नता की तलाश करता है।
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कुछ लोग उसे संसर्ग में तलाशते हैं तो कुछ खानपान में, कुछ नृत्य और संगीत में तो कुछ कविता में। लेकिन तमाम तरह से खुद को आनंदित करने के प्रयास के बाद भी व्यक्ति असंतुष्ट रहता है। व्यक्ति जिसे सही समझता है उसे जानने के बाद भी प्रसन्न नहीं रहता है। वह सोचता है, 'मैं कल अधिक खुश रहूंगा।'
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तो आशा हमेशा उसके मन में रहती है। वह सोचता है जब परिस्थितियां बदल जाएंगी तो मैं खुश हो जाऊंगा। फिर वह सोचता है कि चीजें उसके अनुसार होंगी और उसकी रणनीति कारगर होगी तो उसे खुश होने से कोई रोक नहीं सकेगा। तो हम अपनी खुशी के साथ कुछ शर्तें जोड़ देते हैं। हम कल की उम्मीद करते हैं और हम पैदा हुए तबसे ही कल को बेहतर बनाने की उम्मीद में जी रहे हैं। रोज हम कल की उम्मीद में जीते हैं।
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तमाम धर्म इस आशा पर ही टिके हैं। हर किसी को यही कहा जा रहा है कि एक दिन आप पूरी तरह खुश होंगे। अगर आप उस खुशी वाले दिन तक पहुंचना चाहते हैं तो कुछ कीजिए। उदाहरण के लिए, तीर्थयात्रा पर जाइए, कुछ दान-दक्षिणा कीजिए, मंत्र जाप कीजिए या फिर किसी ज्योतिष की मदद लीजिए ताकि आपको पता लग सके कि आपका अच्छा समय कब आएगा।
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ज्योतिष विज्ञान है लेकिन इसके जानकार कम ही लोग हैं। तो व्यक्ति अपने अच्छे वक्त की उम्मीद में ज्योतिष को अपनी कुंडली दिखाता है और उसकी सलाह पर ही कुछ रत्न धारण करता है। जब तक आप भविष्य में खुश रहने के बारे में सोचेंगे तो अपने वर्तमान में खुश नहीं रह पाएंगे। क्योंकि वर्तमान, वर्तमान है और भविष्य आखिर भविष्य। तो किसी दान-दक्षिणा से, मंत्रों को जपने से, यात्रा पर जाकर या सितारों की गति से अपने भविष्य को अपने पक्ष में लाने की बात मत सोचिए।
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अभी से अपनी जिंदगी को जी भरकर जीना शुरू कीजिए। हममें से हर किसी को खुशी की तलाश है लेकिन हम यह नहीं जानते कि खुशी के लिए कहां देखना होगा। मुझे एक छोटी कहानी याद आ रही है।
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एक भिखारी था। दिन आता और बीत जाता लेकिन वह एक ही जगह बैठकर भीख मांगता रहता था। फटेहाल और बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ। एक दिन इसी हालत में उसकी मौत हो गई। चूंकि लोगों ने जिंदगीभर उसे उसी जगह बैठा देखा था तो उसकी कब्र भी वहीं बनाने का निर्णय लिया गया। जब उन्होंने उस जगह को खोदा तो उसके नीचे उन्हें एक पेटी मिली और उस पेटी में बहुत सारे सिक्के और नोट भरे थे। उस भिखारी को नहीं मालूम था कि वह जिस जगह बैठा है उसके नीचे ही धन छुपा है। उस भिखारी की तरह ही हमारी भी स्थिति है। हम अपनी प्रसन्नता के मालिक खुद हैं लेकिन उसे जमाने भर में ढूंढते रहते हैं। हमारी प्रसन्नता को भीतर ही है। उसे देखने की देर है बस।
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