मंगलवार, 27 जून 2017

= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११/१४-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷

🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏

🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷

रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*

संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री

साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान

अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज

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*= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११) =*

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*पशु-पक्षियों की सृष्टि* 
*मानव पशु पंखी किये, करतार बिनांनी ।* 
*ऐसी बिधि रचना रची, कछु अकथ कहांनी ॥१४॥*  
इसके बाद मनुष्य, पशु, पक्षी आदि प्राणियों की ऐसी अपूर्व तथा विविधता-पूर्ण रचना की कि उसका यथाविधि विस्तार के साथ वर्णन भी नहीं किया जा सकता ॥१४॥
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*चौरासी लाख जीवों की उत्पत्ति* 
*स्वेदज अण्ड जरायुजा, उद्भिज उपजांनी ।* 
*खेचर भूचर जलचरा, ये चारौं खांनी१॥१५॥*
{१. चारखान=चतुखान=स्वदेज, अंडज, जरायुज, उद्भिज=ये चार प्रकार के जीव हैं । और खेचर (पक्षी, कीट-पतंग) भूचर(पशु वानर सर्पादि) जलचर(मछली, शंख आदि), चौथे पातालचर(जो पाताल में रहते) हैं । किसी के मत में अग्निचर(आग के कीड़े) भी हैं ।} 
उन प्राणियों का पहले चार प्रकार से विभाजन किया । जैसे=
१. स्वेदज(पसीने से पैदा होनेवाले यूका, लिक्षा आदि),
२. अन्डज(अन्डे से पैदा होने चिड़िया, कबूतर, कौआ, मोर, उल्लू, मछली आदि), 
३. जरायुज(जरा में लिपट कर पैदा होनेवाले मनुष्य, पशु आदि) और 
४. उद्भिज(भूमि फोड़कर पैदा होने वाले धान, गेहूँ आदि के पौधे) । 
इसी सृष्टि का एक और तरह से तीन प्रकार का विभाजन किया । वह है जैसे=
१. खेचर(आकाश में विचरण करने वाले पक्षी आदि जीव)
२. भूचर(मनुष्य आदि पृथ्वी पर विचरण करनेवाले जीव) । 
३. जलचर(जल में रह कर ही सुख मानने वाले मछली आदि जीव) । समग्र प्राणि-जगत् का इन्हीं चार या तीन भागों में समावेश किया जा सकता है ॥१५॥ 
(क्रमशः)

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