#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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सुर नर मुनिवर वश किये, ब्रह्मा विष्णु महेश ।
सकल लोक के शिर खड़ी, साधु के पग हेठ१ ॥ ९७ ॥
इस माया ने देवता, नर, मुनिवर, ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को भी अपने अधीन किया है । और अधिक क्या कहैं - माया सँतों के पद तले१ रहती है, बाकी तो सभी लोगों के शिर पर खड़ी रहती है ।
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दादू माया चेरी सँत की, दासी उस दरबार ।
ठकुराणी सब जगत की, तीनों लोक मँझार ॥ ९८ ॥
माया सँतों की तो सेविका है । सँतों के दरबार में दासी के समान सतोगुण द्वारा सेवा करती रहती है । अन्य सब जगत के जीवों को स्वामिनी के समान रजोगुण - तमोगुण द्वारा तीनों लोकों में घुमाती रहती है ।
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दादू माया दासी सँत की, शाकत१ की शिरताज ।
शाकत सेती भाँडनी, सँतों सेती लाज ॥ ९९ ॥
सँतों की माया दासी है और असँतों१ की स्वामिनी है । असँतों को निर्लज्ज होकर इधर - उधर घुमाती रहती है और सँतों के पास लज्जाशील होकर शाँत रहती है ।
(क्रमशः)
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