#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*मिश्री मांही मेल कर, मोल बिकाना बंस ।*
*यों दादू महँगा भया, पारब्रह्म मिल हंस ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**श्री गुरूदेव का अंग ३**
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गुरु चंदन चन्दन किये, वृक्ष अठारह भार ।
डाल पान फल फूल का, रज्जब नहीं विचार ॥ ८९ ॥
ढाई मन का एक भार होता है । प्रत्येक वनस्पति का एक एक पत्ता लेने से अठारह भार होते हैं, इसीलिये वृक्षों को अठारह भार कहते हैं । चंदन अठारह भार वृक्षों के डाल, पत्ते, फूल, फलादि सभी अंगो को अपनी सुगंधि से युक्त करता है । वैसे ही गुरु शिष्यों की जाति आदि का विचार न करके उनके तन मन इन्द्रियादि सभी अंगो को सुधारते हैं ।
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गुरु पारस पल में परसि, शिष कंचन कर लीन ।
सो रज्जब महँगे सदा, कुल कालिमा सु छीन ॥ ९० ॥
जैसे लोहा पारस से स्पर्श होता है, तब उसके कालापन आदि संपूर्ण दोष नष्ट होकर वह क्षणभर में सोना बन जाता है और महँगा बिकता है, वैसे ही शिष्य गुरु के ज्ञान को धारण करता है, तब उसके मल आदि सम्पूर्ण दोष नष्ट हो जाते हैं और वह ब्रह्म का साक्षात्कार करके सदा के लिये महान बन जाता है ।.रज्जब निपजहिं इन्द्र गुरु, अवभू१ आदम ऐन२ ।
पहुप पत्र फल पूजिये, सुर नर पावहिं चैन ॥९१ ॥
जैसे इन्द्र से वृक्ष१ उत्पनन होते हैं, फिर उनके पुष्प, पत्र, फलादि से सुर नरादि की पूजा होती है, तब सुर और नरादि को आनन्द प्राप्त होता है । वैसे ही गुरु उपदेश मानव ठीक२ ठीक सुधर जाते हैं, तब उनके कर्म, भक्ति, ज्ञानादि से सभी सुर नरादि आनन्दित होते हैं ।
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तिल तालिब७ गुल१ पीर२ मिल, सुहबत३ सौंधा४ होय ।
जन रज्जब गुंजस५ बिना, कुजंद६ बास न कोय ॥ ९२ ॥
जैसे तिल - तेल और पुष्पों१ के संग३ से तेल में सुगन्ध४ हो जाती है । बिना संग५ तिल६ तेल में सुगन्ध नहीं आती । वैसे ही जिज्ञासु७ को सिद्ध२ गुरु का सत्संग मिलता है तब ही उसमें ज्ञान आता है, बिना सत्संग नहीं आता ।
पहुप पत्र फल पूजिये, सुर नर पावहिं चैन ॥९१ ॥
जैसे इन्द्र से वृक्ष१ उत्पनन होते हैं, फिर उनके पुष्प, पत्र, फलादि से सुर नरादि की पूजा होती है, तब सुर और नरादि को आनन्द प्राप्त होता है । वैसे ही गुरु उपदेश मानव ठीक२ ठीक सुधर जाते हैं, तब उनके कर्म, भक्ति, ज्ञानादि से सभी सुर नरादि आनन्दित होते हैं ।
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तिल तालिब७ गुल१ पीर२ मिल, सुहबत३ सौंधा४ होय ।
जन रज्जब गुंजस५ बिना, कुजंद६ बास न कोय ॥ ९२ ॥
जैसे तिल - तेल और पुष्पों१ के संग३ से तेल में सुगन्ध४ हो जाती है । बिना संग५ तिल६ तेल में सुगन्ध नहीं आती । वैसे ही जिज्ञासु७ को सिद्ध२ गुरु का सत्संग मिलता है तब ही उसमें ज्ञान आता है, बिना सत्संग नहीं आता ।
(क्रमशः)
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