#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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*विरक्तता*
दादू माया वैरिणि जीव की, जनि को लावे प्रीति ।
माया देखे नरक कर, यहु सँतन की रीति ॥ १०१ ॥
माया से विरक्त रहने की प्रेरणा कर रहे हैं - माया जीव की वैरिणी है । इससे कोई भी प्रेम न करे । विरक्त सन्तों की तो यही रीति है कि वे माया को नरक रूप से देखते हैं ।
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*माया*
माया मति चकचाल१ कर, चँचल कीये जीव ।
माया माते मद पिया, दादू बिसर्या पीव ॥ १०२ ॥
माया की क्षोभण शक्ति का परिचय दे रहे हैं - माया ने बुद्धि को भ्रमित१ करके जीवों को चँचल कर दिया है, इसी से ये माया - मद से मस्त हो, विषय - मद्य पीकर परमात्मा को भूल गये हैं ।
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*अन्य लग्न व्यभिचार*
जने जने की राम की, घर घर की नारी ।
पतिव्रता नहिं पीव की, सो माथा मारी ॥ १०३ ॥
१०३ - १०४ में माया का व्यभिचार दिखा रहे हैं - माया - नारी एक पति के साथ रहने वाली पतिव्रता नहीं है । किन्तु प्रत्येक गृह - त्यागी मानव की भक्ता है और गृहस्थों के घर - घर की नारी है । इसके इस व्यभिचार को देख करके ही सँतों ने इसका त्याग किया है ।
(क्रमशः)
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