मंगलवार, 6 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/२७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
.
*तिन कौ गुरु है ज्ञानानन्द ।*
*सौलह कला प्रगट ज्यौं चन्दा ।*
*सुधा श्रवै अरु शीतल रूपा ।*
*ताकौ दरसन परम अनूपा ॥२७॥
उनके भी गुरु थे श्री ज्ञानानन्दजी । वे इतने सुरूप थे मानों सोलह कला युक्त पूर्ण चन्द्रमा हो । वे सबको ब्रह्मामृतरसपान कराने वाले थे । उनके दर्शन पाना भी बिना भाग्य के साधारण आदमी के लिये तो दुर्लभ ही था ॥२७॥
.
*तिनहूँ कौ गुरु प्रगट भयौ बतायौ ।*
*नाम निष्कलानन्द सुनायौ ।*
*सकल कला जिनि दूर निवारी ।*
*ज्ञान कला उर अन्तर धारी ॥२८॥
उनके गुरु का नाम तो सबको सपष्ट था श्रीनिष्कलानन्दजी । शास्त्रों के अन्य अंगों को दूर ही छोड़कर, प्रधान शास्त्र(ज्ञानांग, उपनिषद्) का ही वे दिन-रात हृदय में ध्यान करते थे ॥२८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें