卐 सत्यराम सा 卐
*दादू साधु संगति पाइये, राम अमीफल होइ ।*
*संसारी संगति पाइये, विषफल देवै सोइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
**श्री रज्जबवाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**श्री गुरूदेव का अंग ३**
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सद्गुरु के शब्दों सुन्यो, बहुत होय उपकार ।
जन रज्जब जगपति मिले, छूटे सकल विकार ॥ ४१ ॥
शास्त्र तथा संतों से सुनते आ रहे हैं कि - सद्गुरु शब्दों द्वारा महान उपकार होता है । संपूर्ण विकार हटकर परमेश्वर का साक्षात्कार होता है ।
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सुख दाता दुख भंजता, जन रज्जब गुरु साध ।
शब्द माँहिं सांई मिलैं, दीरघ दत्त१ अगाघ ॥४२ ॥
संसार में गुरु और संत ही दु:ख नष्ट करके सुख देने वाले हैं उनके शब्दों में कथित ज्ञान में स्थिति होने से परब्रह्म प्राप्त होते हैं । अत: उनका शब्द प्रदान करना ही महान् और अगाध दान१ है ।
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जेते जीव सुकृत करैं, इहि सारे संसार ।
तेते रज्जब ज्ञान सुन, साधुन के उपकार ॥ ४३ ॥
इस संपूर्ण संसार में जितने भी प्राणी पुण्य कर्म करते हैं, वे सभी संतों का ज्ञानोपदेश सुन कर के ही करते हैं । अत: संसार में जो कुछ भी अच्छापन है वह सब संतों का ही उपकार है ।
कबीर नामदेव कह गये, परम पुण्य उपकार ।
जन रज्जब जीव उद्धरै, शब्दों इहिं संसार ॥ ४४ ॥
कबीर, नामदेवादि संत गुरु शब्दों से होने वाले उपकार और परम पुण्य को कह गये हैं, इस संसार में गुरु-शब्दों द्वारा ही जीवों का उद्धार होता है ।
जन रज्जब जगपति मिले, छूटे सकल विकार ॥ ४१ ॥
शास्त्र तथा संतों से सुनते आ रहे हैं कि - सद्गुरु शब्दों द्वारा महान उपकार होता है । संपूर्ण विकार हटकर परमेश्वर का साक्षात्कार होता है ।
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सुख दाता दुख भंजता, जन रज्जब गुरु साध ।
शब्द माँहिं सांई मिलैं, दीरघ दत्त१ अगाघ ॥४२ ॥
संसार में गुरु और संत ही दु:ख नष्ट करके सुख देने वाले हैं उनके शब्दों में कथित ज्ञान में स्थिति होने से परब्रह्म प्राप्त होते हैं । अत: उनका शब्द प्रदान करना ही महान् और अगाध दान१ है ।
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जेते जीव सुकृत करैं, इहि सारे संसार ।
तेते रज्जब ज्ञान सुन, साधुन के उपकार ॥ ४३ ॥
इस संपूर्ण संसार में जितने भी प्राणी पुण्य कर्म करते हैं, वे सभी संतों का ज्ञानोपदेश सुन कर के ही करते हैं । अत: संसार में जो कुछ भी अच्छापन है वह सब संतों का ही उपकार है ।
कबीर नामदेव कह गये, परम पुण्य उपकार ।
जन रज्जब जीव उद्धरै, शब्दों इहिं संसार ॥ ४४ ॥
कबीर, नामदेवादि संत गुरु शब्दों से होने वाले उपकार और परम पुण्य को कह गये हैं, इस संसार में गुरु-शब्दों द्वारा ही जीवों का उद्धार होता है ।
(क्रमशः)
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