शुक्रवार, 23 जून 2017

= माया का अंग =(१२/९१-३)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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दादू कहै - जे हम छाड़ैँ हाथ तैं, सो तुम लिया पसार । 
जे हम लेवैं प्रीति सौं, सो तुम दीया डार ॥ ९१ ॥ 
जिन मायिक कनकादि पदार्थों और विकारों को सँत जन त्यागते हैं, सँसारी जन उन्हें हाथ पसार कर अनुराग पूर्वक ग्रहण करते हैं । जिन परोपकारादि दैवी गुण और परब्रह्म के चिन्तन को सँतजन प्रेम पूर्वक ग्रहण करते हैं, उनको सँसारी जनों ने भ्रम - वश छोड़ दिया है । 
दादू हीरा पग सौं ठेलि कर, कंकर को कर लीन्ह ।
पारब्रह्म को छाड़ कर, जीवन सौं हित कीन्ह ॥ ९२ ॥ 
जैसे कोई हीरे को पग से ठुकरा कर कंकर को प्रेम पूर्वक हाथ में उठावे, वैसे ही सँसारी प्राणी परब्रह्म का भजन छोड़ कर, अपने कुटुम्बी आदि सँसारी जीवों में ही प्रेम करते हैं । 
दादू सब को बणिजे खार खल, हीरा कोइ न लेय । 
हीरा लेगा जौहरी, जो माँगे सो देय ॥ ९३ ॥ 
सभी सँसारी लोक विषय - विकार रूप क्षार - खल का ही व्यापार करते हैं किन्तु निरंजन राम का नाम रूप हीरा नहीं लेते - देते । जैसे हीरा का परीक्षक - जौहरी हीरा का जो भी मूल्य मांगे वही देकर हीरा ले लेता है, वैसे कोई सन्त ही अपना सर्वस्व देकर भी निरंजन राम का नाम चिन्तन रूप हीरा ग्रहण करते हैं ।
(क्रमशः)

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