गुरुवार, 22 जून 2017

= ११४ =

卐 सत्यराम सा 卐
*जो कुछ बेद कुरान थैं, अगम अगोचर बात ।*
*सो अनुभै साचा कहै, यहु दादू अकह कहात ॥* 
*दादू अनुभै थैं आनन्द भया, पाया निर्गुण नांव ।*
*निश्चल निर्मल निर्वाण पद, अगम अगोचर ठांव ॥* 
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साभार ~ Rp Tripathi
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**आत्मानुभूति या जीवन-मुक्त मनोदशा ?**
*एक संक्षिप्त चित्रण*
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बहुत संक्षिप्त में ; 
जिस प्रकार मंजिल पर पहुँचने पर ; मंजिल सम्बन्धी सभी प्रश्न समाप्त हो जाते हैं ; उसी प्रकार आत्मानुभूति के बाद ; संसार सम्बन्धी सभी प्रश्न समाप्त हो जाते हैं !!
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परन्तु जिस प्रकार जहर के स्वाद को ; 
बुद्धि-विलास या किसी अन्य की अनुभूति से नहीं समझा जा सकता ; उसी तरह आत्मानुभूति को भी बुद्धि-विलास या किसी अन्य की अनुभूति से नहीं ; वल्कि व्यक्तिगत अनुभूति से ही समझा जा सकता है !!
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एवं जिस प्रकार कस्तूरी ; 
मृग के नाभि में होती है बाहर घाँस में नहीं ; उसी प्रकार आत्मानुभूति रुपी अमृत ; अंदर का विषय है बाहर का नहीं !! तथा आत्मानुभूति के बाद ही माया ; अर्थात ईश्वरीय-जादू का भेद समझ में आता है ; या मृग-मरीचका से मुक्ति मिल पाती है ; इसके पूर्व कभी नहीं !!
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इसके बाद ही व्यक्ति ; 
समस्या से समाधान की यात्रा की आपूर्ति का हिस्सा बन ; जीवन-मुक्त मनोदशा का अधिकारी बन पाता है !! अर्थात जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस संसार में आया है ; उसकी पूर्ति कर पाता है !!
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सार रूप में ; 
जब तक हमें ; अपनी खबर आती नहीं(मैं कौन ?) .. !
तब तक दिल से कभी ; जग की परेशानी जाती नहीं .. !!
** ** ** **ॐ कृष्णम् वंदे जगत गुरुम** ** ** **

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