卐 सत्यराम सा 卐
*साचा सहजैं ले मिलै, शब्द गुरु का ज्ञान ।*
*दादू हमको ले चल्या, जहँ प्रीतम का स्थान ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**श्री गुरुदेव का अंग ३**
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गुरु दरजी सूई शबद, डोरा डोरी सोय ।
रज्जब आतम राम सौं, सद्गुरु सींवै कोय ॥४९ ॥
गुरु रूप दरजी है, शब्द रूप सूई है, जीवों के उध्दार की लग्न है, वही धागा है । इस प्रकार जीवात्मा को राम से मिलाना रूप सींने का कार्य कोई विरले सद्गुरु ही करते हैं ।
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रज्जब आतम राम बिच, गुरु ज्ञाता सु दलाल ।
ज्यों चकवा चकवी मिले, सूरज काटे साल ॥ ५० ॥
जैसे सूर्य चकवा चकवी को मिलाकर उनके वियोगजन्य दु:ख का अन्त करता है, वैसे ही जीवात्मा और राम के बीच में ज्ञानी गुरु ही सुन्दर दलाल हैं जीव को परमात्मा से मिलाकर उसके दु:ख का अन्त करते हैं ।
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सद्गुरु मेले सूर ज्यों, आत्म ओले गालि ।
जन रज्जब जल व्है गये, सके न आपो टालि ॥५१ ॥
जैसे सूर्य ओलों को गाल कर जल में मिला देता है, ओले होकर भी जल अपने जल रूप को नहीं त्याग सकता, वैसे ही सदगुरु जीवात्मा के अज्ञान को नष्ट करके ब्रह्म से मिला देते हैं, जीवात्मा में अज्ञान आने पर भी वह अपने चेतन स्वरूप का त्याग नहीं कर सकता ।
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सद्गुरु सूर सुभाय१, शब्द सलिल रसना रसनि२ ।
जन कन३ उदय उपाय, जन रज्जब उनकी धसनि४ ॥ ५२ ॥
सद्गुरु सूर्य के समान स्वभाव१ वाले हैं, सूर्य की गर्मी से जल उँचे उठकर आकाश में जाता है फिर वर्ष कर पृथ्वी में घुसता है । वैसे ही गुरु की कृपा से उनके अन्त:करण से शब्द उठाता है और जिह्वा पर आता है फिर उसकी घ्वनि२ साधक के अन्त:करण में घुसती है । इस प्रकार जल और शब्द की जो नीचे घुसने३ की क्रिया है, वही अन्न४ और भक्त के उत्पन्न होने का उपाय है, अर्थात अन्न जल से और भक्त गुरु उपदेश उत्पन होता है ।
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सद्गुरु सूर सुभाय१, शब्द सलिल रसना रसनि२ ।
जन कन३ उदय उपाय, जन रज्जब उनकी धसनि४ ॥ ५२ ॥
सद्गुरु सूर्य के समान स्वभाव१ वाले हैं, सूर्य की गर्मी से जल उँचे उठकर आकाश में जाता है फिर वर्ष कर पृथ्वी में घुसता है । वैसे ही गुरु की कृपा से उनके अन्त:करण से शब्द उठाता है और जिह्वा पर आता है फिर उसकी घ्वनि२ साधक के अन्त:करण में घुसती है । इस प्रकार जल और शब्द की जो नीचे घुसने३ की क्रिया है, वही अन्न४ और भक्त के उत्पन्न होने का उपाय है, अर्थात अन्न जल से और भक्त गुरु उपदेश उत्पन होता है ।
(क्रमशः)
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