रविवार, 30 जुलाई 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/१३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*ईश्वर एक और नहीं कोई,*
*इस सीस पर राखहु सोई ।*
*ईहा और इरषा भानो,*
*इतरता कबहु नहीं आनो ॥१३॥*
*(ई)* वह ईश्वर एक है, उसके सामान दूसरा इस ब्रह्माण्ड में कोई 
नहीं है । उसी को अपने सिर(मस्तक) पर धारण कर(उसे पूजनीय समझकर) अपने हृदय में रखना चाहिये । सभी प्रकार की ईहा(इच्छा) तथा दूसरों से ईर्ष्या को अपने मन से निकाल देना चाहिये । इसी तरह इतरता(द्वैतभाव), भेदभाव को अपने से दूर ही रखना चाहिये ॥१३॥
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*उत्तम उहे उनमनी लावे,*
*उर मे पेसि अपुठी आवे ।*
*उरे उरे उरझ्यो संसारा,*
*उलटा चले सु उतरे पारा ॥१४॥*
*(उ)* हम उसी को उत्तम साधक कहेंगे जो उन्मनी मुद्रा के द्वारा हृदय में प्रविष्ट(अन्तर्मुख) होकर बहिर्मुखता(बाह्यवृति) को त्याग दे; क्योंकि इधर(परमगति से नीचे की स्थिति) संसार में उलझे रहना भर है । जो साधक, संसार या बहिर्मुखता से प्रतिकूल होकर साधना करेगा वही परम गति(मोक्ष) प्राप्त कर सकता है ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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