#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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पुरुषा फांसी हाथ कर, कामिनि के गल बाहि ।
कामिनि कटारी कर गहै, मार पुरुष को खाइ ॥१७०॥
कामुक दृष्टि से नारी को पुरुष और पुरुष को नारी हानिकर है । पुरुष विषय - वासना से अपने हाथों की पाश बनाकर तथा कामिनी के गले में डालकर प्रेम करता है । कामिनी कटाक्ष - कटारी नेत्र - हाथ में पकड़ कर पुरुष के मारती है और अपने में आसक्त करके परमार्थ से गिरा देती है ।
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नारी बैरिण पुरुष की, पुरुषा बैरी नारि ।
अंतकाल दोनों मुये, दादू देखि विचारि ॥१७१॥
कामुक दृष्टि से नारी पुरुषों की बैरिन है और पुरुष नारी के बैरी हैं । कुछ विचार करके देखो, काम वासना से अन्त में दोनों ही परमार्थ से गिर जाते हैं ।
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नारि पुरुष को ले मुई, पुरुषा नारी साथ ।
दादू दोनों पच मुये, कछू न आया हाथ ॥१७२॥
नारियाँ पुरुषों को अपने में अनुरक्त करके परमार्थ से गिरी हैं और पुरुष नारियों में आसक्त होकर परमार्थ से गिरे हैँ । इस प्रकार विषय - सुख के लिए बारँबार प्रयत्न करके मर गये किन्तु किंचित मात्र भी उन्हें सन्तोष प्राप्त नहीं हुआ ।
(क्रमशः)
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