मंगलवार, 1 अगस्त 2017

= माया का अंग =(१२/१७३-४)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अंग १२* 
भंवरा लुब्धी वास का, कमल बंधा न आय ।
दिन दश माहीं देखतां, दोनों गए विलाई ॥१७३॥
भोगी पुरुष-भ्रमर भोग-वासना-सुगंध का लोभी होकर नारी-कमल के मुख-पुष्प में आसक्ति-बन्धन से बंध जाता है किन्तु कुछ दिनों में ही देखते-देखते नारी और पुरुष दोनों अतृप्तावस्था में ही नष्ट हो जाते हैं ।
नारी पीवै पुरुष को, पुरुष नारी को खाइ ।
दादू गुरु के ज्ञान बिन, दोनों गये विलाइ ॥१७४॥
इति माया का अंग समाप्त ॥१२॥ ॥सा. १३१६॥
नारी वीर्य अपहरण द्वारा पुरुष का पुरुषत्व नष्ट करती है । पुरुष नारी को अपने आधीन करके परमार्थ से गिराता है । इस प्रकार गुरु के ज्ञानोपदेश बिना मर्यादा रहित व्यवहार से दोनों ही नष्ट हो जाते हैं । अतः गुरु के उपदेश द्वारा इस पतन से अपने को बचाना चाहिए ।
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका माया का अँग समाप्त: ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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