मंगलवार, 1 अगस्त 2017

श्री गुरुदेव का अंग ३(१६५-८)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दीन गरीबी गहि रह्या, गरवा गुरु गम्भीर ।*
*सूक्ष्म शीतल सुरति मति, सहज दया गुरु धीर ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
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**श्री गुरुदेव का अंग ३**
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सद्गुरु को पूगै१ नहीं, यद्यपि स्याणे दास ।
रज्जब आभे२ बहु चढैं, तो भी तल आकाश ॥१६५॥
गुरु के समान शिष्य नहीं हो सकते - बादल बहुत उँचे चढ़ जाते हैं तो भी आकाश२ के तो नीचे ही रहते हैं । वैसे ही यद्यपि शिष्य अति चतुर हो जाते हैं तो भी सद्गुरु के समान१ नहीं हो सकते ।
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रज्जब दीपक लाख पर, कोटि ध्वजा आनन्द ।
तो गुरु की कर आरती, जामें है गोविन्द ॥१६६॥
१६६-१६७ में गुरु की आरती करने की प्रेरणा कर रहे हैं - जब लाख पर दीपक जलाकर और कोटि पर ध्वजा चढाकर सुख का परिचय देते हैं, तब जिन गुरुदेव में गोविन्द विराजमान हैं उनकी आरती अवश्य करनी चाहिये । पूर्व काल में यह प्रथा थी कि - लखपति होने पर अपने घर की छत पर आकाशी दीपक जलाया करते थे और कोटिपति होने पर घर की छत पर ध्वजा चढाई रखते थे, उसी का निर्देश १६६ में किया है । 
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रज्जब छत्र घरे चौंरों ढ़रैं, जहाँ नृपति नर होय । 
तो गुरु उर गोविन्द है, नख शिख आरति जोय१ ॥१६७॥
जब नर नृपति हो जाता है तब उस पर श्वेत छत्र रहता है, चँवर ढोले जाते हैं, गुरुदेव के हृदय में तो परमात्मा स्थित हैं फिर आरती जो१ कर उनके नख से शिखा तक सभी अंगो की आरती क्यों न की जाय वा अपने नख से शिखा तक के अंगो को ही आरती के समान जो कर अर्थात् सावधान करके गुरुसेवा में संलग्न करना रूप आरती क्यों न की जाय ? 
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यथा गोद परधान के, बालक राजकुमार । 
ता को रज्जब सब नवें, उस बालक के प्यार ॥१६८॥
१६८ में गुरुदेव को नमस्कार करने की प्रेरणा कर रहे हैं - जैसे राजकुमार बालक प्रधानमंत्री की गोद में हो तो उस बालक के प्यार से उसे सभी नमस्कार करते हैं, वैसे ही गुरु के हृदय में गोविन्द होने से वे सभी की नमस्कार के पात्र हैं, उन्हें प्रणति करना चाहिये ।
(क्रमशः)

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