🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*ऐया बुझि तुम्हारी जानी,*
*ऐयत कोटिनि दृष्टि भुलानी ।*
*ऐश्र्वर्यहि मनकौ मति लावै,*
*ऐसा ग्यान गुरु समुझावै ॥१७॥*
*(ऐ)* महाराज कहते हैं- ऐ संसार के प्राणी ! तुम्हारी इस अक्ल पर हमें अफसोस है ! तुम तो लाख दो लाख रुपयों(धन)के लोभ में अपने वास्तविक लक्ष्य को खो बैठे ! तुमने ऐश्वर्य को ही सब कुछ समझ लिया है, पर अन्त में यह तुम्हारे किसी काम नहीं आयेगा- ऐसा सन्त ज्ञानी लोग कह गये हैं ॥१७॥
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*ओतप्रोत औ व्यापक सारै,*
*ओछी बुध्दि औस जल धारै ।*
*ओर छौर बाकौ कहुं नांही,*
*ओट आंखि की आवहि जांही ॥१८॥*
*(ओ)* वह ब्रह्म तो इधर उधर, सर्वत्र व्यापक है । प्राणी अपनी तुच्छ बुद्धि से ओस(संसार के मिथ्या सुखों) को ही जल(परमसुख) समझ बैठा है । उस ब्रह्म का कोई ओर-छोर(आदि अन्त) नहीं है । वह इन स्थूल इन्द्रियों से देखा भी नहीं जा सकता । वह आता है, जाता है, पर सहज ही दिखायी नहीं देता ॥१८॥
(क्रमशः)
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