मंगलवार, 1 अगस्त 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
*एक मना लागा रहै, अंत मिलेगा सोइ ।*
*दादू जाके मन बसै, ताको दर्शन होइ ॥* 
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साभार ~ ऊँ नारायण
ॐ नारायण
'सामने वाले व्यक्ति में भी मैं ही हूँ' ऐसा सोच-समझकर उसको सुधरने का मौका देना चाहिए। स्वामी रामतीर्थ बोलते थे : "कुछ लोग अल्प बुद्धि के होते हैं जो दूसरों के दोष ही देखते रहते हैं। 'फलाना आदमी ऐसा है....वैसा है....' इस दोषदृष्टि के कीचड़ से बाहर ही नहीं निकलते। गुणों को छोड़कर दोषों पर ही उनकी दृष्टि टिकती है।
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'घोड़ा दूध नहीं देता है इसलिए वह बेकार है और गाय सवारी के काम नहीं आती इसलिए बेकार है। हाथी चौकी नहीं करता इसलिए बेकार है और कुत्ते पर शोभायात्रा नहीं निकाली जाती इसलिए बेकार है....' आदि-आदि।" अरे भैया ! घोड़े से सवारी का काम ले लो और गाय से दूध पा लो। हाथी शोभायात्रा में ले लो और कुत्ते से चौकी करवाओ। सब उपयोगी हैं। अपनी-अपनी जगह सब बढ़िया हैं। किसी में सौ गुण हों और एक अवगुण हो तो इस अवगुण के कारण उसकी अवहेलना करना यह तो अपने ही जीवन-विकास की अवहेलना करने के बराबर है। तुझे जो अच्छा लगे वह ले ले, बुरे के लिए वह जिम्मेदार है। दूसरों की बुराई का चिन्तन करने से अन्तःकरण तेरा मलिन होगा भैया ! उस अवगुण के कारण उसका अन्तःकरण तो मलिन हुआ ही है लेकिन तू उसका चिन्तन करके अपना दिल क्यों खराब करता है ? 
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भगवान बुद्ध के पास दो मित्र आये और बोलेः "भगवान ! यह मेरा साथी कुत्ते को सदा साथ रखता है। सदा 'टीपू-टीपू' किया करता है। सोता है तो भी साथ में सुलाता है। ...तो बताइये, मरते समय तक टीपू का ही चिन्तन करेगा तो कुत्ता बनेगा कि नहीं ?"
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दूसरे मित्र ने कहाः "भन्ते ! मेरी बात भी सुनिये। मेरा यह मित्र बिल्ली को सदा साथ में रखता है, खिलाता-पिलाता है, घुमाता है, अपने साथ सुलाता है और सदा 'मीनी-मीनी' किया करता है। ....तो बताइये, वह बिल्ली बनेगा कि नहीं ?" बुद्ध मुस्कुराकर बोलेः 'नहीं, वह बिल्ली नहीं बनेगा। बिल्ली तू बनेगा क्योंकि उसकी बिल्ली का चिन्तन तू ज्यादा करता है। वह तेरे कुत्ते का चिन्तन करता है इसलिए वह कुत्ता बनेगा।"
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किसी के दोष देखकर हम उसके दोषों का चिन्तन करते हैं। हो सकता है, वह इतना उन दोषों का अपराधी न हो जितना हमारा अन्तःकरण हो जायेगा। इसलिए अपने अन्तःकरण की सुरक्षा करनी चाहिए, उसके शुद्धीकरण में लगे रहना चाहिए। शील और सन्तोषरूपी भूषण से उसे सजाना चाहिए। शील ही बढ़िया-से-बढ़िया आभूषण है। बाहर के आभूषण खतरा पैदा करते हैं, बाहर के आभूषण ईर्ष्या पैदा करते हैं।
नारायण नारायण
लक्ष्मीनारायण भगवान की जय

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