गुरुवार, 24 अगस्त 2017

= साँच का अंग =(१३/५५-७)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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राम रसायन भर भर पीवे, दादू जोगी जुग जुग जीवे ॥५४॥
मानव होकर भी पशुओं के समान पेट भर - भर के खाते हैं, इससे शरीर में बहुत - सी व्याधियां बढ़ जाती हैँ तथा सिंहादि पशुओं के समान माँसाहार करते हैं, जिससे मन में पापादि विकार रूप अपार रोग बढ़ते रहते हैं किन्तु जो योगी सर्व - रोग नाशक राम - भक्ति रूप रसायन का रुचि भर - भर कर पान करते हैं, वे परब्रह्म को प्राप्त होकर अमर हो जाते हैं ।
दादू चारे चित दिया, चिन्तामणि को भूल ।
जन्म अमोलक जात है, बैठे मांझी फूल ॥५५॥
ईश्वर वो नाम - चिन्तामणि को भूलकर भोजनादि में ही चित्त लगावे रखते हैं - इस प्रकार अपना अमूल्य मानव - जन्म विषयों में व्यर्थ ही जा रहा है, तो भी मानव - समाज के मध्य बैठकर प्रसन्न होते हैं, किन्तु इस प्रसन्नता का परिणाम दु:ख ही है ।
भरी अधौड़ी१ भावठी२, बैठा पेट फुलाइ ।
दादू शूकर श्वान ज्यों, ज्यों आये त्यों खाइ ॥५६॥
मन को भाने२ वाली वस्तुयें जैसे - जैसे आती हैं, वैसे - वैसे ही शूकर व श्वान के समान अमर्यादित मात्रा में खाता रहता है और चमार की भही पर पानी से भरी हुई लटकती कच्छी चमड़ी१ की मश्क के समान पेट फुला कर बैठा रहता है ।
(क्रमशः)

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