#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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*सँस्कार आगम*
पहली पूजे ढूंढसी, अब भी ढूंढस बाणि ।
आगे ढूंढस होइगा, दादू सत्य कर जाणि ॥१२७॥
१२५ में कहते हैं - पूर्व जन्म के सँस्कारों के समान ही अगले जन्मों में सँस्कार होते हैं - पूर्व जन्म में भी, जिनसे घर बनते हैं, उन मिट्टी - पत्थरों के बने हुये देवी - देवताओं की ही पूजा की । उन्हीं सँस्कारों के बल से वर्तमान में भी उन्हीं की पूजा करता है और आगे भी उन्हीं को पूजने वाला होगा । यह बात सत्य ही जानो ।
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*अमिट पाप प्रचँड*
दादू पैंडे पाप के, कदे न दीजे पांव ।
जिहिं पैंडे मेरा पिव मिले, तिहिं पैँडे का चाव ॥१२८॥
१२६ - १२७ में कहते हैं - प्रचँड पाप अमिट होता है, उसमें कभी भी प्रवृत्त नहीं होना चाहिये - पाप के मार्ग में कभी भी पैर न रखो। जिस भक्ति - ज्ञानादि साधन - मार्ग में हमारे प्यारे प्रभु प्राप्त होते हैं, उसी मार्ग में चलने की उत्कंठा रखनी चाहिए ।
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दादू सुकृत मारग चालताँ, बुरा न कबहूं होइ ।
अमृत खाताँ प्राणिया, मुवा न सुनिये कोइ ॥१२९॥
सुकृत मार्ग पर चलते हुये लोक - लज्जादि का भय मत करो । जैसे अमृत खाने से कोई भी प्राणी मरा नहीं सुना जाता, वैसे ही सुकृत कार्य करने से बुरा कभी भी नहीं होता । पाप कर्म से ही बुरा होता है, सो वह नहीं करना चाहिये ।
(क्रमशः)

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