#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सांच अमर जुग जुग रहे, दादू विरला कोइ ।
झूठ बहुत सँसार में, उत्पति परलै होइ ॥१४५॥
कोई विरला साधक सच्छी साधना द्वारा सत्य
परब्रह्म को प्राप्त हो, सदा के लिये अमर होकर परब्रह्म रूप से रहता है । झूठे भक्त सँसार में बहुत
हैं किन्तु वे सँसार में जन्मते - मरते रहते हैं । परब्रह्म को प्राप्त नहीं होते
।
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दादू झूठा बदलिये, सांच न बदल्या जाइ ।
सांचा शिर पर राखिये, साध कहै समझाइ ॥१४६॥
मिथ्या मायिक प्रपँच परिवर्तनशील है ।
सत्य परब्रह्म एक रस रहता है । अत: पाखँड रहित सच्छी साधना द्वारा परब्रह्म की ही
उपासना करो, यही बात सँत जन ठीक समझा २ कर कहते हैं ।
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सांच न सूझे जब लगैं, तब लग लोचन अँध ।
दादू मुक्ता छाड़ कर, गल में घाल्या फँध ॥१४७॥
जब तक सत्य परब्रह्म नहीं दीखता तब तक
ज्ञान - नेत्र अज्ञान के द्वारा आवृत्त होने से जीव अँधा ही है । अँधा होने के
कारण ही जीवन्मुक्त सँतों का संग छोड़ कर गले में सकाम कर्म रूप फँदा डाल रखा है ।
(क्रमशः)

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