卐 सत्यराम सा 卐
*दादू रहते पहते राम जन, तिन भी माँड्या झूझ ।*
*साचा मुँह मोड़ै नहीं, अर्थ इता ही बूझ ॥*
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साभार ~ Kripa Shankar B Mudgal
राजस्थान के लोकदेवता गोगा जी .....
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वीर प्रसूता भारत माँ ने जैसे और जितने वीर उत्पन्न किये हैं वैसे पूरे विश्व के इतिहास में कहीं भी नहीं हुए। भारत का इतिहास सदा गौरवशाली रहा है। हजारों वर्षों के वैभव और समृद्धि के बाद पिछले एक हज़ार वर्षों का कालखंड कुछ खराब रहा जो हमारे ही सामूहिक बुरे कर्मों का फल था| वह समय ही खराब था जो निकल चुका है। पर इसमें कभी भी भारत ने पूर्णतः पराधीनता स्वीकार नहीं की और निरंतर अपना संघर्ष जारी रखा। राजस्थान में अनेक वीरों को आज भी लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। इनमें प्रमुख हैं ---- पाबूजी, गोगाजी, रामदेवजी, तेजाजी, हडबुजी और महाजी।इन सब ने धर्मरक्षार्थ बड़े भीषण युद्ध किये और कीर्ति अर्जित की। निम्न लेख लोकदेवता गोगाजी को समर्पित है।
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गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में उनके भक्त गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा है कि महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
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गोगा नवमी पर पूरे राजस्थान में घर घर में पकवान बनाए जाते हैं और मिट्टी से बनी गोगाजी की प्रतिमा को प्रसाद लगाकर रक्षाबन्धन पर बाँधी हुई राखियाँ व रक्षासूत्र खोलकर उन्हें चढाए जाते हैं।
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जब महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर का विध्वंश करने और लूटने जा रहा था तब राजपूताने में गोगाजी(गोगा राव चौहान) ने ही सर्वप्रथम उसका रास्ता रोका था। उन्होंने उसके द्वारा भेजे गए हीरे जवाहरातों के थाल पर ठोकर मार दी और अपनी छोटी से सेना को युद्ध का आदेश दिया। इसका विवरण आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने अपनी कालजयी कृति "जय सोमनाथ" में भी किया है।
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घमासान युद्ध हुआ। गजनी की विशाल सेना के सामने उनकी छोटी सी सेना कहाँ टिकती। वृद्ध गोगाजी ने अपने सभी पुत्रों, पौत्रों, भाइयों, भतीजों, भांजों व सभी संबंधियों सहित जन्मभूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया। उनके परिवार व सैनिकों की समस्त मातृशक्ति ने जीवित अग्नि में कूद कर जौहर किया ताकि विधर्मी उनकी देह को ना छू सकें।
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उनका एक पुत्र सज्जन बचकर सोमनाथ चला गया। मंदिर के विध्वंस के बाद जब गज़नवी की सेना लूट के माल के साथ बापस लौट रही थीं तब वह उनका मार्गदर्शक बन गया और उसकी सेना को मरुभूमि में ऐसा फँसाया कि गजनवी की सेना के हजारो सिपाही प्यास से मर गए।
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युद्ध में जिस स्थान पर गोगाजी का शरीर गिरा था उसे गोगामेडी कहते हैं| यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है। इसके पास में ही गोरखटीला है तथा नाथ संप्रदाय का विशाल मंदिर स्थित है।
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नागवंशी क्षत्रीय चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। गोगाजी को गुरु गोरखनाथ जी से एक वरदान प्राप्त था अतः उन्हें सर्पों का देवता माना जाता है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोकधारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्लपक्ष तथा कृष्णपक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। नाथ परम्परा के साधुओं के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है।
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चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान की तरह गोगाजी भी एक परम वीर यशस्वी राजा हुए। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी(हरियाणा) तक था। ये गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। इनका जन्म भी गुरु गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।
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महमूद गज़नवी का मुख्य जासूस अलबरुनी था। उस ने गज़नवी को भारत को लूटने और सोमनाथ मंदिर व हिन्दुओं के अन्य आस्था स्थलों के विध्वंश के लिए प्रेरित किया था। उसी ने सोमनाथ के विध्वंशित ढाँचे पर आक्रमणकारी सेना को नमाज़ पढवाई थी। उसी के नेतृत्व में तथाकथित सूफी संतों ने पूरे भारत का भौगोलिक व सांस्कृतिक अध्ययन किया था कि किस मार्ग से आक्रमणकारी सेना को जाना है, कहाँ कहाँ लूटपाट करनी है और किस किस किस की ह्त्या करनी है, हिन्दुओं की कौन कौन सी कमजोरियां हैं, कैसे हिन्दुओं को मुर्ख बनाकर लूटा जा सकता है आदि आदि । रास्ते में जगह जगह दरगाहों के रूप में अपने अड्डे बना दिए जो उसके जासूसों और स्वागतकर्ता मार्गदर्शकों से भरे हुए थे। रास्ते में उसकी सेना के लिए रसद आदि की व्यवस्था भी उन लोगों ने कर रखी थी। हिन्दुओं ने उन जासूसों को संत मानकर उनकी अतिथि सेवा की जो हमारी सद्गुण विकृति थी। अल बरूनी ने संस्कृत भाषा और ज्योतिष आदि का अध्ययन किया था। अजमेर के राजा का गजनी की सेना सामना नहीं कर पाई| अजमेर के राजा को कहा कि बस, अब हम और नहीं लड़ेंगे, व वचन दिया कि हम बापस चले जायेंगे। बापस जाने की बजाये उसकी सेना वहीं आसपास छिप गयी और जब अजमेर की सेनाएँ सायंकालीन पूजापाठ और संध्या में व्यस्त थीं तब अचानक धोखे से आक्रमण कर अजमेर के राजा को सेना सहित मार दिया। इससे पूर्व राजपूताने में ही गोगा राव चौहान की सेना ने मरते दम तक युद्ध कर महमूद के दांत खट्टे कर दिए थे। गज़नवी छल कपट और अधर्म से लड़ता हुआ आगे बढ़ता रहा। हिन्दुओं ने धर्म युद्ध लड़े जैसे शरणागत की रक्षा व आमने सामने ही लड़ना आदि। पर मुस्लिम आक्रमणकारी असत्य और अन्धकार की शक्तियां थे जिन्होंने युद्ध जीते तो सिर्फ अधर्म से ही।
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भारत में एक बहुत बड़े ऐतिहासिक शोध की और सही इतिहास पढाये जाने की आवश्यकता है। हमें हमारा गौरवशाली इतिहास नहीं पढ़ाया जाता, सिर्फ पराधीनता की दास्ताँ पढाई जाती है। हमें वो ही इतिहास पढ़ाया जाता है जिसे हमारे शत्रुओं ने हमें नीचा दिखाने के लिए लिखा था।
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जय हो भारतभूमि और सनातन धर्म, जिसने ऐसे वीरों को जन्म दिया।
जय जननी जय भारत !
ॐ ॐ ॐ ॥

"महमूद गज़नवी का मुख्य जासूस अलबरुनी था| उसी ने गज़नवी को भारत को लूटने और सोमनाथ मंदिर के विध्वंश के लिए प्रेरित किया था| उसी ने सोमनाथ के विध्वंशित ढाँचे पर नमाज़ पढवाई थी| "
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