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卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सोइ जोगी१, सोइ जँगमा, सोइ सूफी, सोइ शेख ।
सोइ सँन्यासी, सेवड़ा, दादू एक अलेख ॥१५४॥
वही नाथ१, वही टाली बजाते हुये भिक्षा मांगने वाला जँगम, वही मुसलमानों की सँप्रदाय का सूफी, साधू, वही मुसलमानों की चार जातियों (शेख, सैयद, मुगल, पठान) में शेख, वही सँन्यासी और वही जैन मत के साधुओं के एक भेद का साधू सेवड़ा श्रेष्ठ है, जो मन इन्द्रियों के अविषय एक परब्रह्म के चिन्तन में ही लगा है । इन सबकी विशेषता भगवत् - परायणता से ही है ।
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सोइ काजी, सोई मुल्ला, सोइ मोमिन मुसलमान ।
सोइ सयाने, सब भले, जे राते रहमान ॥१५५॥
वही मुसलमानी कानून के अनुसार फैसला करने वाला काजी, वही नमाज पढ़ाने वाला विद्वान् मुल्ला, वही धर्मनिष्ठ मोमिन, और वे ही चतुर मुसलमान; सब अच्छे हैं जो दयालु परमात्मा के भजन में रत हैं ।
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राम नाम को बणिजन बैठे, तातैं मांड्या हाट ।
सांई सौं सौदा करैं, दादू खोल कपाट ॥१५६॥
राम - नाम का व्यापार करने के लिये ही सँतों ने उक्त जोगी - जँगमादि षट् दर्शन रूप हाट लगाई है, गृह - कार्यों से मुक्त होकर निश्चिन्त बैठे हुये अपने हृदय के मल - विक्षेप - कपाट हटा कर के, परमात्मा को अपना सर्वस्व देकर, स्वरूप स्थिति लेना रूप व्यापार करते हैं । तथा सत्संग के द्वारा मानवों की वस्तुयें भगवत् के समर्पण करा कर उन्हें भक्ति दिलाते हैं ।
(क्रमशः)

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