#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*तज काम क्रोध मोह माया, राम राम करणा ।*
*जब लग जीव प्राण पिंड, दादू गहि शरणा ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**आज्ञाकारी का अंग ८**
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गुरु आज्ञा अंजन१ तजों, आज्ञा अन्तर२ मेट ।
रज्जब आज्ञा उर वसो, आज्ञा अविगत३ भेंट ॥२९॥
गुरु आज्ञानुसार विचार करके हृदय से माया१-राग को त्यागो, भेद२ भावना को नष्ट करो, वृत्ति को आन्तर मुख करके साक्षी रूप से हृदय में स्थिर रहो और मन इन्द्रियों के अविषय३ ब्रह्म से मिलो ।
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गुरु आज्ञा अवतार तज, आज्ञा अश्म न सेव ।
आज्ञा अडसठ त्यागिये, रज्ब आज्ञा एव ॥३०॥
३०-३२ में आज्ञा का स्वरूप बता रहे हैं - गुरु आज्ञानुसार अवतारों को परब्रह्म मानना त्यागो, परब्रह्म मान कर पत्थर की सेवा न करो, ६८ तीर्थो में भ्रमण करना छोडकर, निरंतर निरंजन राम का भजन करो, यही गुरुदेव की आज्ञा है ।
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सात वार एकादशी, आश उपास उतार१ ।
रज्जब भजिये राम को, तेतीसौं तिरस्कार ॥३१॥
रविवारादि सात वारों और एकादशी उपवासादि से आत्मकल्याण की आशा त्यागकर इनकी उपासना मन से हटा१ दो और ११ रुद्र १२ आदित्य ८ वसु २ अश्विनीकुमार, इन ३३ देवताओं की भी आराधना त्यागकर निरन्तर निरंजन राम का ही भजन करो ।
(क्रमशः)

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