रविवार, 1 अक्टूबर 2017

= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७- दो.-७/गी.-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७) =*
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*= दोहा =*
*सुन्दर सद्गुरु यौं कहै, सत्य कछू नहिं रंच ।*
*मिथ्या माया१ बिस्तरी, जो कुछ सकल प्रपंच ॥७॥*
{१. मिथ्या माया - यह पञ्च भूतादि तत्वों की बनी हुई सृष्टि सत्य(नित्य व अक्षर) नहीं है न चिदात्मक है । यह क्षर और अनित्य होने से मिथ्या(दिखावा मात्र) जादूगर का सा ख्याल है न सत् है न असत् है । अनिर्वचनीय है, जो किसी भाँति भी कहने या समझने में नहीं आती है, जैसे स्वप्न जो न झूठा ही है न सच्चा ही, क्योंकि यदि सच्चा हो तो जाग्रत में भी दीखना चाहिये और झूठा(अभूत = अनहुआ) हो तो हुआ क्या ? प्रतीत हुआ न होता तो निद्रा की अवस्था में क्या भासमान हुआ ?}
महाकवि कहते हैं - ‘इस संसार में कुछ भी सत्य नहीं है । यह दृश्यमान सारा जगत् प्रपञ्च-स्वरूप है, मिथ्या है, मायामय है; अतः इसमें किसी प्रकार की आसक्ति नहीं रखनी चाहिये’-यह बात गुरुदेव ने मुझको भली भाँति समझा दी ॥७॥
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*= गीतक =*
*उपज्यौ प्रपंच अनादि कौ,*
*यह महामाया बिस्तरी ।*
*नानात्व ह्वै करि जगत भास्यौ,*
*बुद्धि सबहिन की हरी ।*
*जिनि भ्रम मिटाइ दिखाइ दीनौ,*
*सर्व व्यापक रांम है ।*
*दादू दयाल प्रसिद्ध सद्गुरु,*
*ताहि मोर प्रनांम हैं ॥६॥*
इस संसार की उत्पत्ति अनादि है(आरम्भ अज्ञात है), यह और कुछ नहीं केवल माया का विशाल प्रपञ्च है ।
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यह माया ही नाना प्रकार के गुण, कर्म, स्वभाव आदि से सृष्ट पदार्थों में भास् रही है । इसके पीछे दौड़ते-दौड़ते हर एक प्राणी की बुद्धि विवेकभ्रष्ट हो चुकी है ।
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जिस सद्गुरु ने मेरे लिये अपने अलभ्य ज्ञानोपदेश से जगद्विषयक मेरी भ्रान्त धारणा को मिटाकर ‘राम ही सर्वव्यापक है’ यह साक्षात्(प्रत्यक्ष) करा दिया,
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उस सद्गुरु श्रीदादूदेव को मेरा कोटिशः प्रणाम है ॥६॥
(क्रमशः)

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