बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

= भेष का अंग =(१४/७-९)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू भांडा भर धर वस्तु सौं, ज्यों महंगे मोल बिकाइ । 
खाली भांडा वस्तु बिन, कौड़ी बदले जाइ ॥७॥ 
बर्तन यदि उत्तम वस्तु से भरा हो तो अधिक मूल्य में बिकता है, खाली हो तो कौड़ियों में जाता है । वैसे ही भक्ति - ज्ञानादि वस्तुओं से पूर्ण अन्त:करण महान् माना जाता है, खाली नहीं । 
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दादू कनक कलश विष सौं भरा, सो किस आये काम । 
सो धन कूटा चाम का, जामें अमृत राम ॥८॥ 
यदि सोने का सुन्दर कलश विष से भरा हो तो वह किस काम आयेगा ? विष तो पान करने से मारक होगा और मलिन चमड़े का कुप्पा यदि अमृत से भरा हो तो अमर करने वाला होने से धन्य है । वैसे ही यदि शरीर तो भेषादि द्वारा सुन्दर है और अन्त:करण विषय विकार - विष से भरा है, तो वह त्याज्य है । शरीर तथा भेष सुन्दर न होने पर भी जिसके हृदय में अमृतत्व देने वाला निरंजन राम के वास्तव स्वरूप का ज्ञान रूप अमृत भरा है= निरँतर ब्रह्माकार वृति रहती है, वह धन्यवाद के योग्य है । 
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दादू देखे वस्तु को, बासन१ देखे नाँहिं । 
दादू भीतर भर धरा, सो मेरे मन माँहिं ॥९॥ 
लोग बर्तन१ की सुन्दरता न देख कर वस्तु की ही श्रेष्ठता देखते हैं । वैसे ही हम भेषादि से सजे हुये शरीर को नहीं देखते, किन्तु हृदय में जो भाव भरा होता है, उसी से हमारे मन में उसके भले - बुरे का निश्चय होता है ।
(क्रमशः)

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