बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९(२५-८)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*दादू शब्द विचार करि, लागि रहे मन लाइ ।*
*ज्ञान गहै गुरुदेव का, दादू सहज समाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**श्री रज्जबवाणी गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९**
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रज्जब पावे दूरसौं, शब्द वास नर नाग । 
पै गुरु चंदन पास गये, शीतल होय सुभाग१ ॥२५॥ 
सर्प को चंदन की सुगंध तो दूर से मिल जाती है किन्तु उसके विष की गरमी मिटकर शीतलता तो तभी प्राप्त होती है, जब सर्प चंदन के पास जाकर उसके लिपटता है । वैसे ही गुरु का शब्द तो परम्परा से साधकों के द्वारा मिल जाता है, किन्तु परम शांति प्राप्त होने का सौभाग्य१ तो गुरु के पास जाने पर ही मिलता है । 
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रज्जब केशर खेत गुरु, बीज वचन बिच जोर ।
आन१ अवनि२ उर विपुल३ अति, पै सो कण४ करहि न फोर५ ॥२६॥ 
जिसमे केशर उत्पन्न होती है उसी खेत में केशर का बीज डालने से वह जोर करता है, दूसरे१ पृथ्वी२ के खेत अत्याधिक३ है किन्तु उनमें वह बीज४ अँकुरित५ नहीं होता । वैसे ही ज्ञान के वचन गुरु के हृदय में ही सबल रहते हैं, अन्य हृदय तो अत्यधिक है किन्तु उनमें वह अज्ञान नष्ट करने की योग्यता नहीं रखता । 
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रज्जब सद्गुरु सीप सम, शिष ह्वै स्वाति सुनीर । 
मन मुक्ता मधि निपज ही, जुदे न निपजे वीर ॥२७॥ 
गुरु रूप सीप में शिष्य रूप स्वाती बिन्दु पड़ता है अर्थात गुरु के उपदेश में शिष्य की चित्तवृत्ति लगती है, तब ज्ञान रूप मोती उत्पन्न होता है । हे भाई ! सीप से स्वाती बिन्दु दूर रहे और गुरु से शिष्य दूर रहे, तो दोनों में ही मोती और ज्ञान उत्पन्न नहीं होता ।
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सद्गुरु सुन्दरी शुक्ति मधि, शिष सुत मुक्ता खेत । 
देखो निपजे ठौर नग, जन रज्जब कह देत ॥२८॥
पुत्र उत्पन्न होने का गर्भाशय रूप खेत नारी में है, मोती के उत्पन्न होने का खेत सीप का मध्य भाग है और देखो, अन्य नग भी अपने उत्पन्न होने के स्थान में ही उत्पन्न होते हैं । वैसे ही शिष्य के उत्पन्न होने का ज्ञान रूप खेत सद्गुरु में है अर्थात गुरु ज्ञान से ही शिष्य को तत्त्व ज्ञान होता है । ये हमने यथार्थ ही कहा है ।
(क्रमशः)

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