卐 सत्यराम सा 卐
*काल झाल तैं काढ कर, आतम अंग लगाइ ।*
*जीव दया यहु पालिये, दादू अमृत खाइ ॥*
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साभार ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
###### संस्कार सुवास ######
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^^^^गाय को नहीं, गोली मुझे मारो ^^^^
कथा सम्राट प्रेमचंदजी उन दिनों गोरखपुर में अध्यापक के रूप में कार्यरत थे । एक दिन उनकी गाय अंग्रेज जिलाधीश के घर की फुलवारी में चली गई । नाराज अफसर ने उस पर बंदूक तान दी । इसी क्षण प्रेमचंदजी भी वहां आ गये । उन्होंने अफसर से क्षमा मांगी ; लेकिन वह आग बबूला हो चुका था । उसने कहा - "तुम्हारी गाय मेरे घर में धुसी कैसे ? मैं इसे तुरंत गोली मार दूंगा ।" प्रेमचंदजी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की; लेकिन वह नहीं माना । आखिरकार प्रेमचंदजी गाय और अंग्रेज अफसर के बीच आकर खडे हो गये और बोले - "तो फिर चला ही दो गोली ।" एक भारतीय की हिम्मत देखकर अंग्रेज अफसर के पसीने छूट गये । वह कुछ नहीं बोला और प्रेमचंदजी मुस्कुराते हुए अपनी गाय समेत लौट गये ।
#### संकलन : योगी रमणनाथजी ^^साम्भर झील जयपुर ।।
^^^^^^^सत्यराम सा

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