गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

= १२६ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सब दिखलावैं आपको, नाना भेष बनाइ ।*
*जहँ आपा मेटन, हरि भजन, तिहिं दिशि कोइ न जाइ ॥* 
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साभार ~ Kripa Shankar Bawalia Mudgal

**संत की पहिचान.......**
यह लेख लिखने की मेरी बिलकुल भी इच्छा नहीं थी, पर फिर भी किसी प्रेरणावश लिख रहा हूँ| हम लोग इतने भोले हैं कि बिना परखे ही किसी को भी संत कह देते हैं| 
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किन्हीं राजनीतिक परिस्थितियों में या किसी सरकार द्वारा कोई समारोह मनाकर घोषित किये जाने पर, या हमारा धर्मांतरण करने वाला क्या कोई संत बन जाता है ? कोई हमारी जड़ें खोदता है, या हमारी अस्मिता पर ही मर्मान्तक प्रहार करता है, क्या ऐसा व्यक्ति कोई संत हो सकता है ? 
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जो हमारी आस्था को खंडित करता हो व हमारे लोगों का धर्मांतरण करता हो ऐसा व्यक्ति संत नहीं हो सकता| ऐसे ही कोई आत्म-घोषित भी संत नहीं होता|
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यहाँ मैं संतों के कुछ लक्षण लिख रहा हूँ ....
(१) संतों में कुटिलता का अंशमात्र भी नहीं होता ......
संत जैसे भीतर से हैं, वैसे ही बाहर से होते है| उनमें छल-कपट नहीं होता|
(२) संत सत्यनिष्ठ होते हैं ......
चाहे निज प्राणों पर संकट आ जाए, संत कभी असत्य वादन नहीं करते| वे किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलेंगे| रुपये-पैसे माँगने वे चोर बदमाशों के पास नहीं जायेंगे| वे पूर्णतः परमात्मा पर निर्भर होते हैं|
(३) संत समष्टि के कल्याण की कामना करते हैं, न कि सिर्फ अपने मत के अनुयायियों की|
(४) उनमें प्रभु के प्रति अहैतुकी प्रेम लबालब भरा होता है| उनके पास जाते ही कोई भी उस दिव्य प्रेम से भर जाता है|
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संत दादूदयाल जी के पट्ट शिष्य सुन्दर दास जी ने संत-असंत के अनेक लक्षणों का विस्तृत व स्पष्ट वर्णन अपनी वाणी में किया है| मेरा निवेदन है कि आँख मींच कर हम किसी को संत ना माने, चाहे भारत सरकार उसे संत मानती हो|

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