शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

= साधु का अँग =(१५/१-३)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
भेष - अँग के अनन्तर सँत विषयक विचार करने के लिये "साधु का अँग" कहने में प्रवृत्त मँगल कर रहे हैं - 

दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: । 
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥१॥ 
जिनकी कृपा से साधक भेषादि बाह्य चिन्हों के आग्रह से पार होकर वास्तविक साधुता द्वारा मुक्ति प्राप्त करता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सँतों को हम अनेक प्रणाम करते हैं । 
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*साधु महिमा* 
दादू निराकार मन सुरति सौं, प्रेम प्रीति सौं सेव ।
जे पूजे आकार को, तो साधू प्रत्यक्ष देव ॥२॥ 
२ - ४ में साधु महिमा कहते हैं - मन की वृत्ति स्थिर करके प्रेम पूर्वक निराकार परमात्मा की उपासना करो यदि निराकार में मन स्थिर न होने के कारण आकार की ही उपासना करना चाहते हो तो ज्ञानी ब्रह्म रूप होने से उपास्य देव के प्रतीक ज्ञानी सँत प्रत्यक्ष ही हैं, प्रीति से उनकी सेवा करो । 
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दादू भोजन दीजे देह को, लीया मन विश्राम ।
साधू के मुख मेलिये, पाया आतमराम ॥३॥ 
जैसे भोजन स्थूल शरीर के अँग पेट में डालते हैं किन्तु उससे सूक्ष्म मन भी सँतुष्ट होता है, वैसे ही सँतों को भोजन कराने से आत्म स्वरूप राम भी प्रसन्न होते हैं ।
(क्रमशः)

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