गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

= गुरुदेवमहिमा- स्तोत्राष्टक(ग्रन्थ १८- छ.१/२ =)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*गुरुदेव महिमा- स्तोत्राष्टक१ (ग्रन्थ १८)*
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*= भुजंगप्रयात =*
*प्रकाशं स्वरूपं हृदै ब्रह्म ज्ञानं,*
*सदाचार येही निराकार ध्यानं ।*
*निरीहं निजानन्द जानैं जगादू,*
*नमो देव दादू नमो देव दादू ॥१॥*
ये मेरे सद्गुरु सच्चिज्योतिःस्वरूप हैं, वे अपने हृदय में नित्य निरन्तर ब्रह्म का ही चिन्तन करते रहते हैं । उस निराकार ब्रह्म की उपासना ही उनकी शाश्वत साधना-पद्धति है । ये संसार से वीतराग व् वितृष्ण(निष्काम) हो चुके हैं और सदा के नित्यानन्द में निमग्न रहते हैं । ये जगत् का आदिकारण(अविद्या) जान चुके हैं । इन मेरे गुरुदेव श्रीदादूजी महाराज को मेरा सादर प्रणाम है ॥१॥
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*अछेदं अभेदं अनंतं अपारं,*
*अगाधं अबाधं निराधार सारं ।*
*अजीतं अभीतं गहे हैं समादू,*
*नमो देव दादू नमो देव दादू ॥२॥*
ये ब्रह्मरूप हैं(अतः उसी की तरह) किसी भी शास्त्र से अछेद्य है, इनका अन्त या पार नहीं पाया जा सकता, अवगाहन नहीं किया जा सकता, इन्हें अपने सत्कार्यों में कोई बाधा(विघ्न) नहीं पहुँचा सकता । ये संसार में सारभूत(= कसौटी पर चढ़े हुए सोने की तरह) हैं । इन्हें कोई भी पराजित नहीं कर सकता, अतः ये निर्भय हैं । ये यम, दमादि साधना-सम्पति के मालिक हैं । ऐसे देवाधिदेव श्री दयालजी महाराज को मेरा बार-बार सादर दण्डवत् सत्यराम(प्रणाम) है ॥२॥
(क्रमशः)

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