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卐 सत्यराम सा 卐
*विरहनी को श्रृंगार न भावे,*
*है कोई ऐसा राम मिलावे ॥टेक॥*
*विसरे अंजन मंजन चीरा,*
*विरह व्यथा यहु व्यापै पीरा ॥१॥*
*नव-सत थाके सकल श्रृंगारा, *
*है कोई पीड़ मिटावनहारा ॥२॥*
*देह गेह नहीं सुधि शरीरा,*
*निशदिन चितवत चातक नीरा ॥३॥*
*दादू ताहि न भावे आन,*
*राम बिना भई मृतक समान ॥४॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**विरह का अंग १०**
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जैसे नारी नाह१ बिन, भूली सकल श्रृंगार ।
त्यों रज्जब भूला सकल, सुन सनेह दिलदार ॥१७॥
जैसे नारी अपने पति१ का वियोग होने पर विरह व्यथित रहती है और सौन्दर्य के साधन सभी श्रृंगारों को भी भूल जाती है । वैसे ही हम भी अपने प्यारे प्रभु के स्नेह की कथा सुनकर सब कुछ भूल गये हैं ।
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अरिल -
शक्ति१ सु:ख शशि सीर२ सुधा रस वर्ष हीं ।
पीवत प्राण पीयूष३ सब हि मन हर्ष हीं ॥
मो मन वाजि४ विशेष विरह बपु चाँदियाँ५ ।
परिहाँ रज्जब रस विष होय, उभय मुख बाँदियाँ ॥१८॥
मायिक१ सुखों का उपभोग करके तथा चन्द्रमा की शीतल२ किरणों से वर्षने वाले अमृत३ रस का पान करके सभी प्राणियों का मन हर्षित होता है किन्तु मेरा मन तो घोड़े४ के समान विशेष प्रकार का है और उस के विरह रूप घाव५ है । घोड़े के पीठ पर घाव हो और उस घाव में शरद् पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरण द्वारा चन्द्रामृत पड़ जाता तो वह घोड़ा मर जाता है । वैसे ही मेरे मन में मायिक सुखों की अभिलाषा आ जाय तो मेरा मन भी परमार्थ दृष्टि से मर ही जायगा । देखो, चन्द्रमृत अन्य सबको तो हितकर रस रूप है किन्तु घोड़े को तो विष रूप होकर मार देता है, वैसे ही मायिक सुख अन्य सबके मन को तो हितकर है किन्तु मेरे मन को तो परमार्थ से गिरा देता है, परन्तु घोड़े के घाव पर पट्टी लगी हो तो घोड़ा नहीं मरता, वैसे ही मेरे मन में मायिक सुखों की अभिलाषा न आये और पूर्ण वैराग्य हो तो मेरा मन भी परमार्थ से न गिरेगा ।
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रज्जब रुचे न राम बिन, सकल भांति के सु:ख ।
भगवंत सहित भावहिं सबै, नाना विधि के दु:ख ॥१९॥
राम के दर्शन न होने से सभी प्रकार के सुख भी हमे रुचिकर नहीं हो रहे हैं और राम के साथ रहने पर तो सभी प्रकार के दु:ख भी प्रिय लगते हैं ।
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जन रज्जब जगदीश बिन, ऋतु भली कोइ नाँहिं ।
शीत उष्ण वर्षा बुरी, विरह व्यथा मन मांहिं ॥२०॥
जगदीश्वर के दर्शन बिन कोई भी ऋतु प्रिय नहीं लगती है । जब विरह का दु:ख मन में रहता है तब हेमन्त, ग्रीष्म और वर्षा तीनों ही ऋतु बुरी लगती है ।
(क्रमशः)

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