🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१) =*
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*= चतुर्थ उदाहरण =*
*तेल जरै बाती जरै, दीपग जरै न कोइ ।*
*दीपग जरता सब कहै, भारी अचरज होइ ।*
*भारी अचरज होइ, जरै लकरी अरु घासा ।*
*= पंचम उदाहरण =*
*अग्नि- जरत सब कहै, होइ यह बड़ा तमासा ॥*
*सुन्दर आतम अजर, जरै यह देह बिजाती ।*
*दीपक जरै न को,जरत है तेल रु बाती ॥३॥*
(अब इसी अस्थिरता की भ्रांत धारणा का चौथा उदाहरण देते हैं --) यद्यपि दीपक की प्रकाश-क्रिया में तैल और बत्ती ही जलाते हैं, दीपक में कोई क्रिया नहीं होती, तो भी लोक-व्यवहार में कहा जाता है ‘दीपक जल रहा है’ यह आश्चर्य की बात बात है ।
(पाँचवा उदाहरण --) इसी तरह चूल्हे में लकड़ी क्या घास जलाता है, परन्तु लोग कहते हैं - ‘अग्नि जल रही है’ । यह कितनी हँसी की बात है कि किसी भी समझदार को यह विवेक नहीं होता कि वस्तुतः अग्नि नहीं, लकड़ी या घास जलता है ! कवि कहते हैं - वास्तव में तेल और बत्ती ही जलती है दीपक नहीं जलता, लकड़ी या घास ही जलते है अग्नि नहीं; उसी प्रकार यह आत्मा तो अजर अमर है, केवल नश्वर देह ही(समय-समय पर कर्मानुसार) विजातीय(दूसरी-दूसरी) अवस्थाओं में बदलता रहता है ॥३॥
(क्रमशः)

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