#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
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जहां अरँड अरु आक था, तहं चन्दन ऊग्या माँहिं ।
दादू चन्दन कर लिया, आक कहै को नाँहिं ॥१०॥
जैसे जहां आक, एरँड के वृक्ष हों वहां यदि चन्दन का वृक्ष लग जाय तो उन आकादि को भी सुगँध देकर चन्दन बना देता है फिर उन्हें कोई भी आकादि नाम से नहीं बोलता । वैसे ही ज्ञान विचारादि से हीन जातियों के मनुष्यों में ज्ञान भक्ति आदि से युक्त सँत उत्पन्न हो जाय तो उनको भी ज्ञान भक्ति आदि से युक्त कर देता है । फिर उन्हें कोई भी अभक्त और अज्ञानी नहीं कहता ।
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साधु नदी, जल रामरस, तहां पखालै अँग ।
दादू निर्मल मल गया, साधू जन के संग ॥११॥
सँत जनों के सत्संग में जाओ । सँत नदी के समान हैं । उनमें राम की पराभक्ति रस रूप जल भरा है । उससे जिनने अपना अन्त:करण धोया है, उनका अविद्या मैल नष्ट हो गया है और वे निर्मल ब्रह्म को प्राप्त हुये हैं ।
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साधू बर्षे राम रस, अमृत वाणी आइ ।
दादू दर्शन देखताँ, त्रिविध ताप तन जाइ ॥१२॥
१२ में सँत परमार्थी हैं, यह कहते हैं - सँतजन जहां तहां से आकर अमृत समान प्रिय वाणी द्वारा राम - भक्ति - रस की वर्षा करते हैं । उनके दर्शन करते ही शरीर के दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों ताप नष्ट हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

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