#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
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साधू जन सँसार में, हीरे जैसा होइ ।
दादू केते उद्धरे, संगति आये सोइ ॥७॥
सँसार में सँत हीरे के समान हैं । जैसे हीरा प्रकाश देता है, वैसे ही सँत जन ज्ञान प्रकाश प्रदान करते हैं । जो भी उनकी सत्संगति में आये हैं, वे सभी अज्ञानाँधकार से पार हुये हैं ।
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साधु जन सँसार में, पारस परकट गाइ ।
दादू केते उद्धरे, जेते परसे आइ ॥८॥
सँसार में सँत जन पारस और कामधेनु गो के समान प्रकट हैं । जैसे पारस और कामधेनु दरिद्रता को हर लेते हैं वैसे ही सँत जनों के सत्संग में जितने भी आ मिले हैं वे सभी जीव - भाव रूपी दरिज्ता से पार हो गये हैं ।
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रूख वृक्ष वनराइ सब, चन्दन पासे होइ ।
दादू बास लगाइ कर, किये सुगँधे सोइ ॥९॥
सँपूर्ण वन समूह के छोटे - बड़े वृक्षों में से जो भी चन्दन के पास होते हैं, उनको चन्दन अपनी सुगँध देकर सुगँध युक्त कर देता है । वैसे ही सँत सँसार की जाति समूह में से छोटी बड़ी जाति का कोई भी उनके पास जाता है तो उसे अपना ज्ञान देकर ज्ञानी बना देते हैं ।
(क्रमशः)

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