मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

= १२२ =

卐 सत्यराम सा 卐
*छाड़ै सुरति शरीर को, तेज पुंज में आइ ।*
*दादू ऐसे मिल रहै, ज्यों जल जलहि समाइ ॥* 
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साभार ~ Kripa Shankar Bawalia Mudgal

आध्यात्म में पढो कम, और ध्यान अधिक करो ......
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हम जितना समय पढने में लगाते हैं, उससे चार गुना अधिक समय पूर्ण प्रेम से परमात्मा के ध्यान में व्यतीत करना चाहिए| ध्यान का आरम्भ नाम-जप से होता है| जप-योग का अभ्यास करते करते, यानि जप करते करते, ध्यान अपने आप होने लगेगा| पूरी सृष्टि ओंकार का यानि राम नाम का जाप कर रही है| हमें उसे निरंतर सुनना और उसी में लीन हो जाना है| अतः पढो कम, और ध्यान अधिक करो| उतना ही पढो जिससे प्रेरणा और शक्ति मिलती हो| पढने का उद्देश्य ही प्रेरणा और शक्ति प्राप्त करना है| साथ भी उन्हीं लोगों का करो जो हमारी साधना में सहायक हों, यही सत्संग है| साधना भी वही है, जो हमें निरंतर परमात्मा का बोध कराये|
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सृष्टि निरंतर गतिशील है| कहीं भी जड़ता नहीं है| जड़ता का आभास माया का आवरण है| यह भौतिक विश्व जिन अणुओं से बना है उनका निरंतर विखंडन और नवसृजन हो रहा है| यह विखंडन और नवसृजन की प्रक्रिया ही नटराज भगवान शिव का नृत्य है|
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वह परम चेतना जिससे समस्त ऊर्जा और सृष्टि निर्मित हुई है वे शिव हैं| सारी आकाश गंगाएँ, सारे नक्षत्र अपने ग्रहों और उपग्रहों के साथ अत्यधिक तीब्र गति से परिक्रमा कर रहे हैं| सृष्टि का कहीं ना कहीं तो कोई केंद्र है, वही विष्णु नाभि है और जिसने समस्त सृष्टि को धारण कर रखा है वे विष्णु हैं|
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उस गति की, उस प्रवाह की और नटराज के नृत्य की भी एक ध्वनी हो रही है जिसकी आवृति हमारे कानों की सीमा से परे है| वह ध्वनी ही ओंकार रूप में परम सत्य 'राम' का नाम है| उसे सुनना और उसमें लीन हो जाना ही उच्चतम साधना है| समाधिस्थ योगी जिसकी ध्वनी और प्रकाश में लीन हैं, और सारे भक्त साधक जिस की साधना कर रहे हैं, वह 'राम' का नाम ही है जिसे सुनने वालों का मन उसी में मग्न हो जाता है|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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