卐 सत्यराम सा 卐
*ये दोनों ऐसी कहैं, कीजे कौन उपाइ ।*
*ना मैं एक, न दूसरा, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
'जिस प्रकार प्रकाश में अंधकार खो जाता है, विलीन हो जाता है.........।' '.......ऐसे ही अद्वितीय परम् तत्व में भ्रान्ति का कारण विलीन हो जाता है। वह अवयव रहित है, इसमें उसमें भेद कहां।' बेहद अनूठी सूझ है।
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घर में अंधेरा घिरा है, मनुष्य दीपक जलाता है; कभी सोचा कि अंधेरा कहां चला जाता है। अंधेरा घर के बाहर जाता नहीं? अंधेरा जाता कहां है? अंधेरा प्रकाश में लीन हो जाता है। साधारणतः तो ऐसा समझना कठिन लगेगा कि अंधेरा प्रकाश में लीन हो गया। जैसे सफेद वस्त्र पर काली स्याही लीन हो जाये, तो इसका क्या अर्थ होगा?
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अर्थ ये न होगा कि काली स्याही सफेद वस्त्र में लीन हो गई, अर्थ होगा सफेद वस्त्र ही काली स्याही में लीन हो गया। करके देखे मनुष्य ! तब पायेगा कि सफेद वस्त्र खो गया, काली स्याही नहीं खोई। अंधेरा प्रकाश में लीन हो जाता है। गहरा अर्थ निकलता है इससे। कि प्रकाश और अंधकार शत्रु नहीं हैं। अर्थ?
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अर्थ हुआ कि संसार और मोक्ष में कोई शत्रुता नहीं है। संसार मोक्ष में लीन हो जाता है। अर्थ हुआ कि मिथ्या और सत्य में कोई विरोध नहीं है, मिथ्या सत्य में लीन हो जाता है।

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