रविवार, 22 अक्टूबर 2017

= भेष का अंग =(१४/३४-६)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू शेख१ मुशायख औलिया२, पैगम्बर सब पीर४ ।
दर्शन५ सौं परसन६ नहीं, अजहूं वैली७ तीर ॥३४॥
परमात्मा भेष५ से नहीं मिलते६ । गुरुजन१ मुशायख(शेख मुल्लादि धर्म के ज्ञाता) सँत२, पैगम्बर(ईश्वर का सँदेश वाहक) और सिद्ध महात्मा५ आदि के भेष को धारण करने वाले, सभी अभी तक सँसार समुद्र से पार नहीं हो सके हैं, अभी इधर७ के किनारे पर ही हैं ।
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नाना भेष बनाइ कर, आपा देख दिखाइ ।
दादू दूजा दूर कर, साहिब सौं ल्यौ लाइ ॥३५॥
प्राणी नाना प्रकार के भेष बनाके स्वयँ को देखकर प्रसन्न होते हैं और दूसरों को धोखे में डालते हैं किन्तु इससे परमार्थ में कोई लाभ नहीं है । अत: भेषादि अन्य प्रपँच को हृदय से दूर करके परब्रह्म चिन्तन में ही वृत्ति लगाओ ।
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दादू देखा देखी लोक सब, केते आवैं जाँहिं ।
राम - सनेही ना मिलैं, जे निज देखैं माँहिं ॥३६॥
आने जाने वाले लोगों के देखा - देखी हमारे पास कितने ही भेषधारी आते हैं किन्तु उनमें जो अपने भीतर हृदयस्थ आत्माराम को देखते हों, ऐसे राम के प्यारे भक्त नहीं मिलते ।
(क्रमशः)

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