रविवार, 29 अक्टूबर 2017

= १३२ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*स्वारथ सेवा कीजिये, ताथैं भला न होइ ।*
*दादू ऊसर बाहि कर, कोठा भरै न कोइ ॥*
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साभार ~ Rp Tripathi

**गणेशजी :: और :: उनका वाहन चूहा** 

सम्मानित मित्रों ; 
गणेश-चतुर्थी के पर्व पर मंदिरों और कई घरों में ; चूहे पर सवार गणेशजी की मूर्तियों की स्थापनाएँ होती हैं !! परंतु मित्रों क्या हमने कभी विचार किया है कि :-- 

गणेशजी जैसे भारी भरकम व्यक्तित्व का ; एक चूहे जैसा छोटा जीव ; कैसे बोझ उठा सकता है ? कैसे उनका वाहन बन सकता है ? आख़िर इससे हमें क्या संदेश दिया जा रहा है ? 

मित्रों जब भी हम इस विषय पर गहराई से चिंतन करेंगे तो पायेंगे कि :--
इससे हमें यह संदेश दिया जा रहा है कि हम -- " भार-हीन जीवन जीने की कला को आत्मसात करें " !! 

और भारहीन वही हो सकता है ; जो गुणवान हो !!  
क्योंकि यह सब-विदित है कि -- राजा को सिर्फ़ उसके देश में ही आदर मिलता है ; परंतु विद्वान को सर्वत्र !! अतः गणपति का संक्षिप्त में अर्थ हुआ :-- गुण-पति !! 

दूसरे शब्दों में ; 
यदि हम लें कम ; और दें ज़्यादा ; तो कभी किसी को भार नहीं लगेंगे !! इसे नीचे दिए हुए एक दो उदाहरणों से और अधिक स्पष्ट करते हैं :-- 

उदाहनार्थ :-- 
१. गाय का पालना !! 
एक ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति को भी गाय बोझ नहीं लगती ; क्योंकि -- वह चारे के अनुपात में दूध अधिक मूल्य का देती है !! यही एकमात्र ऐसी प्राणी है ; जिसके मल-मूत्र भी गुणकारी और पवित्र हैं !! 

जैसे पीपल एक-मात्र ऐसा वृक्ष है ; जो चोबीसों घंटे अर्थात् रात्रि में भी आक्सीजन देता है ; वैसे ही यही एक मात्र ऐसी पशु है ; जो अपने प्रस्वांश में भी आक्सीजन देती है !! अर्थात इसका सानिध्य चोबीसों घंटे ; आक्सीजन प्रदान करता है !! इसके मरने पर ; इसका चमड़ा तथा हड्डी ; सभी उपयोगी हैं यह तो सर्व-विदित है ही !! 

२. कन्या की ससुराल में ; उसके मायक़े के पक्ष के लोगों का आगमन !! 
मित्रों यह हम सबका अनुभव है कि :-- जब हम कन्या के माता-पिता-भाई-बहिन के रूप में कन्या के घर जाते हैं ; तो वह ख़ुशी से हमारा स्वागत करती है !! यदि हम बिना सूचना के ; रात्रि के १२ बजे भी पहुँचे हों ? तो भी वह हमारे मना करने पर भी ; हमारे लिए भोजन बनाती है !! हम उसे भार-स्वरूप नहीं लगते !! 

परंतु मित्रों ; जब हम किसी अन्य सम्बंध से उसी घर में पूर्व सूचना देकर भी पहुँचते हैं ; और वह भी दिन के १२ बजे ; तो हमारा वैसा स्वागत नहीं होता !! उसी कन्या को हमें ; एक गिलास पानी देना भी ; भार-प्रद लग सकता है !! क्यों ? 

मित्रों जब भी हम इसका कारण जानने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे कि :-- 
हमें कन्या से बदले में कुछ लेने का ख़याल ; कभी आता ही नहीं !! माता-पिता-भाई-बहिन के रूप में हमारे दिमाग़ में स्वाभाविक रूप से यही चिंतन चलता रहता है कि :-- किस तरह हम उसकी उन्नति में अधिक से अधिक सहयोगी बन सकें !! 

अर्थात सिर्फ़ देने या "देव-भाव " !! "देव":-- अर्थात् जो लेता कम ; और देता अधिक है !! अतः यदि हम अन्य सम्बन्धों में भी ; देवत्व भाव अधिक रखें !! अर्थात् ; दूसरों से कमसे कम सेवा लें ; और दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करें ; तो भारहीन बनते जायेंगे ; इसमें कोई संदेह नहीं है !! 

मित्रों वैसे तो पूर्ण देव ; तो एक मात्र परमात्मा ही है !! 
क्योंकि वही हम सभी के ; मूल माता-पिता-भाई-बहिन-गुरु-सखा आदि सभी सम्बन्धों के रूप में हमारे परम शुभ-चिंतक है !! वही एक मात्र हमारे शरीरों को ज़िंदा रखने के लिए परमावश्यक प्राण-वायु बिना-मूल्य देते हैं !! अतः उनका स्थान तो कोई नहीं ले सकता !! परंतु मित्रों हमारे अंदर देवत्व भाव का अधिक से अधिक समावेश करके ; कुछ अंशों में हम उनके प्रतिनिधि तो अवश्य ही बन सकते हैं !! 

बहुत संक्षिप्त में ; 
गणेश जी के वाहन चूहा का रहस्य यही है मित्रों कि हम सभी :-- देवत्व भाव धारण कर ; अर्थात् दूसरों से कम सेवा ले ; और दूसरों की अधिक से अधिक सेवा कर ; विद्वान बन ; भारहीन बनकर जीवन जियें !! क्योंकि ; जिस व्यक्ति ने जीवन में सेवा अधिक की हो ? वह जीते जी ही नहीं ; अर्थी पर भी किसी को भार नहीं लगता !! 

और अंत में दो शब्द :-- 
मित्रों हमें कैसे पता चले कि हम ; भारहीन जीवन जीने की कला सीख रहे हैं ? 

तो मित्रों इसका एक ही मापदंड है :-- 
जिस पलों में हमारी स्वांश चैन की होती है ; उन पलों में हमारी बुद्धि का सही विकास हो रहा होता है !! और बुद्धिमान ही विद्वान या गुणपति कहलाता है !! अतः येंसे विचारों ; कृत्यों से परहेज़ रखें ; जो स्वांश को बेचैनी की स्थिति में ले जाते हों !! 

बेचैनी की स्थिति में ; 
कभी कोई निर्णय ना लें !! उस समय सभी कुछ छोड़ ; सिर्फ़ स्वांश को ही ; चैन की बनाने को प्राथमिकता दें !! स्वांश को चैन की बनाने की प्रक्रिया को ही मित्रों ; " ध्यान " से कार्य करने के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है !! और हमेशा सलाह दी जाती है कि :-- " ध्यान से कार्य करें " !! 

अतः मित्रों हमें हमेशा स्मरण रखना है कि :-- चैन की स्वांश के बग़ैर ; बुद्धि शांत नहीं होती !! और शांत बुद्धि के चिंतन के बग़ैर ; कभी कोई गुणपति या विद्वान नहीं बन सकता !! 

और मित्रों ; 
चैन की श्वासों से जी रहे व्यक्ति का जीवन ; बच्चे की तरह विलासिता से रहित भी होता है !! अर्थात् उसका खान-पीन ; रहन-सहन ; सभी -- " सादा जीवन उच्च विचार " का प्रारूप होता है !! 

मित्रों ; बच्चे के रूप में तो हम सभी एक समान ; माँ का दूध पीकर ही पले बढ़े हैं !! हमेशा जीने के लिए ही खाया है ; कभी खाने के लिए कभी नहीं जिये !! " नींद ना देखे टूटी खाट ; भूख ना देखे रूखो भात " की कहावत को ही सदा चरितार्थ किया है !! यह विलासिता-पूर्ण जीवन तो ; बेचैनी की स्वांशो ने ला दिया !!

अतः बेचैनी की स्वांशो को तिलांजलि दें !! फिर हम जहाँ भी जायेंगे ; वहाँ शांतिमय वातावरण अपने साथ ले जायेंगे तथा गणपति जी के सही भक्त कहलाएँगे !! 

उपरोक्त से सहमत हैं ना मित्रों ? 

********ॐ कृष्णम वन्दे जगत् गुरुम********

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