गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

= साँच का अंग =(१३/१६६-६८)

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卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*साँच का अंग १३* 
जे पहुंचे ते कह गये, तिन की एकै बात ।
सबै सयानै एक मत, उनकी एकै जात ॥१६६॥
१६६ - १७० में सज्जन - दूर्जन विचार और गति भेद बता रहे हैं - जो ज्ञानी महानुभाव स्वस्वरूप - स्थिति तक पहुंचे हैं, वे सभी स्वस्वरूप स्थिति की साधना पद्धति कह गये हैं । उन सबकी बातों में भेद नहीं ज्ञात होता । अत: ये सब एक मत हैं और एक ब्रह्म ही उनकी जाति है ।
जे पहुंचे ते पूछिये, तिनकी एकै बात ।
सब साधों का एक मत, ये बिच के बारह बाट ॥१६७॥
जो स्वस्वरूप स्थिति तक पहुंचे हैं, उनसे परामर्श करो तो उनकी बातें एक सिद्धान्त पर आ मिलती है । अत: सभी श्रेष्ठ सँतों का एक मत ज्ञात होता है किन्तु ये बीच के लोग बुद्धि द्वारा कल्पना किये हुये नाना मार्गों में तितर - बितर होकर नष्ट - भ्रष्ट हो रहे हैं ।
सबै सयाने कह गये, पहुंचे का घर एक ।
दादू मारग मांहिले, तिनकी बात अनेक ॥१६८॥
सभी ज्ञानीजन कहे गये हैं - स्वस्वरूप स्थिति तक पहुंचे हुये सँत का घर एक ब्रह्म ही होता है=वह ब्रह्म में ही लय होता है और जो साधन - मार्ग में हैं उनके हृदय के विचार वासना के अनुसार अनेक होते हैं, अत: वासनानुसार ही उनका जन्म होता है । 
(क्रमशः)

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