🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= राम-अष्टक(ग्रन्थ १९) =*
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*= मोहिनी१ =*
*आदि तुम ही हुते अवर नहिं कोइ जी ।*
*अकह अंति अगह अति बर्न नहिं होइ जी ॥*
*रूप नहिं रेख नहिं श्वेत नहिं श्याम जी ॥*
*तुम सदा एक रस रामजी रामजी ॥१॥*
हे राम जी !(हे परब्रह्म परमेश्वर !) आप ही इस सकल ब्रह्माण्ड के आदि कारण हैं(अर्थात् आप से ही इस सरे संसार की सृष्टि हुई है) और कोई नहीं । आपके विषय में कोई भी इत्थन्तया नहीं कह सकता । आपको ग्रहण या प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है । आपकी वास्तविकता स्थिति का किसी से भी वर्णन नहीं हो सकता ।
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आपके रूप का भी वर्णन नहीं हो सकता, न उसका रेखांकन(चित्र) हो सकता है । न आपको सफ़ेद कहा जा सकता है, न कृष्ण(अर्थात् न आप पर सात्त्विक गुणों का प्रभाव है, न राजस या तामस का) ! आप तो सदा एकरस रहनेवाले हैं(आप त्रिगुणातीत हैं) ॥१॥
(१ कहीं यह ‘स्त्रग्वणी’ छन्द है । अथवा कहीं विपिनतिलका’ नाम का छन्द है जिसमे १० + १० मात्र पर विराम और अंत में रगण है । यदि सर्वत्र गणों का निर्वाह होता तो यह ‘निशिपाल’ छन्द होता(पंदरह अक्षर और भ, ज, स, न, र गण का) परन्तु यह मात्रिक सा रह गया, इसलिये २० मात्र का छन्द है । अथवा संकर वृत्त है । और मोहिनी छन्द १५ अक्षर का और स, भ, त, य, स गणों का होता है, सो है नहीं । इसका ऐसा लक्षण प्रगट हो रहा है कि आदि में गुरु हो तो उसके आगे लघु हो फिर गुरु हो चाहे लघु और अन्त में लघु गुरु अवश्य हो । अन्त में रगण का भी नियम नहीं रहा । कहीं रगण कहीं सगण है ।)
(क्रमशः)

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