#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।*
*दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥*
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साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य
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“प्रपत्ति”~‘आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें....’
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घनी काली, अँधेरी और भयानक रात.. तूफानी रात.. बन्दीगृह.. असुरों का पहरा.. देवकी-वसुदेव जी के मन में व्याप्त भय.. और ऐसे समय में हमारे प्रभु का प्राकट्य होता है..
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अगर हम प्रभु राम के जन्म का समय देखें तो बड़ी अनुकूलता दिखेगी – ‘नौमी तिथि मधुमास पुनीता’.. नवमी तिथि, उजियारा पक्ष, दिन का समय, न ज्यादा सर्दी न ज्यादा गर्मी, शांति देने वाला समय, शीतल-मंद-सुगन्धित पवन बह रही थी, वन फूले हुए, पर्वत मणियों से जगमगाते हुए, नदियों में अमृत बहता हुआ, माँ कौशल्या के मन में अपूर्व आनन्द, राजमहल जैसा स्थान.. इससे ज्यादा अनुकूलता क्या होगी..
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इसे देखकर मेरे जैसे कई लोगों के मन में आया कि जहाँ सुख, समृद्धि, शांति, ऐश्वर्य भरपूर छाये होते हैं वहीं प्रभु आते हैं.. ‘बड़े लोगों’ का आगमन तो ऐसी जगह ही होता है.. हमारे प्यारे प्रभु ने यह बात सुन ली.. मन की बात जो थी.. प्रभु मुस्कुराए.. वो बोले तो कुछ नहीं पर करके दिखा दिया..
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दिखा दिया कि जब तुम्हारे जीवन में अँधेरा ही अँधेरा हो, अभाव ही अभाव हो, तुम्हारे दुर्गुण रूपी राक्षसों ने तुम्हें कैद कर रखा हो, तुम्हारे मन में अनेक भय हों, तुम्हारे जीवन में तूफ़ान आया हुआ हो, तुम परिस्थितियों की जंजीरों में जकड़े हुए हो तब “मैं” आऊँगा.. जब कोई नहीं आता, तुम्हारा साया भी दिखाई नहीं देता – तब मैं आऊँगा.. वैसे मैं पहले भी बसंत में नहीं आया बल्कि मैं जब आता हूँ तो बसंत आ ही जाता है.. मैं ‘अभाव’ में ‘भाव’ लेकर आऊँगा.. ‘असुरों’ को ‘सुरों’ में सज़ा दूँगा.. बस एक आवाज़ तो दो..
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अपने से कोई साधन नहीं बनता, दुर्गुण ही दुर्गुण हैं अपने पास, मन में प्रेम नहीं भय है तो बस पुकारो.. पुकारो.. पुकारो.. ‘प्यारे दरसन दीजो आये’... पुकार प्रभु का प्राकट्य करा देगी.. प्रभु सर्वसमर्थ हैं पर पुकार को अनसुना करने की सामर्थ्य उनमें नहीं है..
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कलियुग पुकारने का मौसम है.. पुकारो.. ‘हरि नाम’ पुकारो.. जीवन की काली रात को अगर ‘श्रीकृष्णजन्माष्टमी’ बनाना है तो खूब हरि नाम पुकारो.. मोह-लोभ-काम-क्रोध का कैदी किस साधन से कहाँ, कैसे प्रभु को खोजने जायेगा ??.. पर श्री कृष्ण प्रभु ने बताया है, दिखाया है, दिखाते हैं कि मैं उस कैदखाने में भी आऊँगा.. अब वक्त है कि “हम देखें”.. ‘कैदियों हरि नाम पुकारो’ – वह परम मुक्त – मुक्तिदाता कैदियों को छुड़ाने कैदखाने में आता है..
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प्रेम के कारण वो प्रकट होते हैं.. किसका प्रेम ???.. हमारे मन में तो भाव नहीं भय है.. पर वो हमसे प्रेम करते हैं इसलिए आते हैं और हमें प्रेम करना सिखाते हैं.. प्रेम अभय कर देता है..
‘रुख से पर्दा हटाना पड़ेगा तुझे गिर के चरणों में मैं जब मचल जाऊँगा’
“स्वामी सौमित्राचार्य”

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