#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू झूठा राता झूठ सौं, सांचा राता सांच ।
एता अँध न जानहीं, कहं कंचन, कहं कांच ॥४०॥
झूठे भेषधारी का मन मिथ्या विषयों में रत रहता है और सच्चे सँत का मन सत्य परब्रह्म में रत रहता है । विचार - नेत्रों से हीन अँधे सँसारी इस भेद को नहीं जानते । जैसे कंचन और काँच एक नहीं हो सकते, वैसे ही सच्चा सँत और दँभी एक समान नहीं हो सकते ।
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*इन्द्रियार्थी भेष*
दादू सचु बिन सांई ना मिले, भावै भेष बनाइ ।
भावै करवत ऊर्ध्व मुख, भावै तीरथ जाइ ॥४१॥
४१ - ४२ में कहते हैं - यथार्थ साधन बिना भेष आदि से भगवान् नहीं मिलते, चाहे भेष धारण करो, काशी में उर्ध्व मुखवाली करवत से कट कर प्राण त्यागो, आकाश की ओर ऊंचा मुख कर खड़े रहते हुये अन्न - जल छोड़ कर प्राण त्यागो, या तीर्थों में भ्रमण करो, किन्तु सच्चे साधन द्वारा यथार्थ - ज्ञान बिना ब्रह्म का साक्षात्कार कभी भी नहीं होता ।
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दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।
पाखँड प्रपँच दूर कर, सब साधों की साखि ॥४२॥
परमात्मा के नाम का अखँड चिन्तन ही सच्चा साधन है, उसकी विधि सँतों से ग्रहण करके तथा पाखँड प्रपँच को त्याग करके उसे निरन्तर हृदय में रक्खो, उससे ज्ञान द्वारा ब्रह्म का साक्षात्कार होगा । यही सब सँतों की साक्षी है । शिक्षा है ।
(क्रमशः)

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